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Maha Shivratri Vrat Niyam: क्या हैं महाशिवरात्रि व्रत के नियम, पहली बार व्रत करने जा रहे हैं तो अपनाएं ये स्टेप

Maha Shivratri Vrat Niyam: महाशिवरात्रि व्रत का हिंदुओं के लिए बड़ा महत्व है। भक्त फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाए जाने वाले शिव शक्ति मिलन पर्व पर व्रत रखते हैं। लेकिन क्या जानते हैं महाशिवरात्रि व्रत के नियम

भारतFeb 26, 2025 / 03:15 pm

Pravin Pandey

Maha Shivratri Vrat Niyam

Maha Shivratri Vrat Niyam: महाशिवरात्रि व्रत नियम

Maha Shivratri Vrat Niyam: जयपुर के ज्योतिषी डॉ. अनीष व्यास के अनुसार महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इसके अलावा सृष्टि के आरंभ में भगवान शिव इसी दिन लिंगरूप में प्रकट हुए थे। इसी कारण भक्त इस दिन उत्सव मनाते हैं और व्रत रखते हैं। आइये जानते हैं महाशिवरात्रि व्रत के नियम क्या हैं।

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1.डॉ. व्यास के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत (Maha Shivratri Vrat Niyam) कम से कम 14 वर्षों तक करना चाहिए। इस व्रत में रात के चारों प्रहर में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है, रात्रिजागरण, नृत्य-गीत, मंत्र जप, स्तोत्र पाठ आदि करना चाहिए।
2. शिवरात्रि के एक दिन पहले से ही महाशिवरात्रि व्रत (Maha Shivratri Vrat Niyam) की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। इसके तहत त्रयोदशी तिथि के दिन भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
3. शिवरात्रि के दिन सुबह नित्य कर्म करने के बाद भक्तों को पूरे दिन व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के दौरान भक्तों को मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा दोहरानी चाहिए और भगवान शिव से व्रत को (Maha Shivratri Vrat Niyam) निर्विघ्न रूप से पूर्ण करने का आशीर्वाद मांगना चाहिए।
4. शिवरात्रि के दिन भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के बाद ही पूजा करना चाहिए या मंदिर जाना चाहिए। शिव भगवान की पूजा रात्रि के समय करना चाहिए और अगले दिन स्नानादि के बाद अपना व्रत (Maha Shivratri Vrat Niyam) छोड़ना चाहिए।
5. व्रत (Maha Shivratri Vrat Niyam) का पूर्ण फल पाने के लिए भक्तों को सूर्योदय और चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के मध्य के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए। हालांकि एक अन्य धारणा के अनुसार व्रत के समापन (Maha Shivratri Vrat Niyam) का सही समय चतुर्दशी तिथि के पश्चात है। हालांकि शिव पूजा और पारण (व्रत का समापन) दोनों की चतुर्दशी तिथि अस्त होने से पहले करना श्रेष्ठ माना जाता है।

Maha Shivratri Vrat Niyam: पहली बार व्रत करने जा रहे हैं तो अपनाएं ये स्टेप

1.व्रत के एक दिन पहले ही व्रत का नियम (Maha Shivratri Vrat Niyam) ग्रहण कर लेना चाहिए। इसके लिए गुरु या विद्वान ब्राह्मण से जानकारी लेनी चाहिए।
2. सर्वप्रथम प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जगकर प्रातः स्मरण और नित्य कर्म (प्रातः स्मरण, शारीरिक शुद्धि, संध्या-तर्पण, पंचदेवता और विष्णु की पूजा ) करना चाहिए। बाद में रात्रि पूजा के लिए रात में भी स्नान ध्यान करना चाहिए।
3. संकल्प (Maha Shivratri Vrat Niyam) पढ़ाने के लिए ब्राह्मण को आमंत्रित करें। किसी भी व्रत का तात्पर्य उपवास (अन्न-जल त्याग) मात्र नहीं होता है, बल्कि इसका अर्थ अधिष्ठाता देवता की पूजा – अर्चना, हवन और दान ब्राह्मण भोजन कराने आदि से होता है, इसलिए इन क्रियाओं को जीवन में शामिल करें।
4. व्रत (Maha Shivratri Vrat Niyam) के दौरान शास्त्रों में निषिद्ध बातें क्रोध न करना, असत्य भाषण न करना, पापियों से वार्तालाप नहीं करना, दिन में नहीं सोना, परिश्रम न करना इत्यादि का पालन करना चाहिए।


महाशिवरात्रि व्रत संकल्प


“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यैतस्य मासोत्तमे मासे फाल्गुने मासे कृष्णेपक्षे चतुर्दश्यां तिथौ ………… वासरे ………… गोत्रोत्पन्नः ………… शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं वर्णानुसार) ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवव्रतमहं करिष्ये ॥”

5.रात के पहले प्रहर (प्रदोष काल) में पूजा की तैयारी करके घर या शिवमंदिर जहां भी पूजा करनी हो, आसन पर बैठ कर पवित्रीकरण , गणपत्यादि पंचदेवता और भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा, स्वस्तिवाचन आदि करके पुनः संकल्प करें । इसके बाद मंत्रों के साथ इन गतिविधियों को पूरा करें
पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्रः पवित्रोऽवा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याऽभ्यन्तरः शुचि:, पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥

आचमन मंत्र : ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः पढ़ते हुए तीन बार आचमन करके ओठों को अंगुष्ठमूल से पोंछकर हाथ धो लें और पढ़ें ॐ हृषीकेशाय नमः ॥
आसनशुद्धि मंत्र : ॐ पृथिवी त्त्वया धृता लोका देवी त्वम् विष्णुना धृता, त्वम् च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् पढ़ते हुए आसन पर कुशा से गंगाजल छिड़कें।

दिग्बंधन मंत्र : ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः, ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया पढ़ते हुए बांयें हाथ में पीली सरसों लेकर दाहिने हाथ से ढंककर अभिमंत्रित करें, इसके बाद दशों दिशाओं में छिड़काव करना चाहिए।
रक्षाबंधन या मौली बांधना : ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः, तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल पढ़ते हुए रक्षासूत्र बांधे।


पंञ्चदेवता पूजन


अक्षत : इदं अक्षतं ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवता: इहागच्छत इह तिष्ठत ॥
जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयानि ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः॥
फूल चंदन : इदं सचंदनपुष्पं ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः॥

अक्षत : इदं अक्षतं ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः॥
जल : एतानि गंधपुष्पधूपदीपताम्बूल यथाभागनैवेद्यं ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः॥

जल : आचमनीयं पुनराचमनीयम् ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः॥

फूल : पुष्पांजलिं ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवताभ्यो नमः॥

विसर्जन : ॐ गणपत्यादि पञ्चदेवता: पूजितास्थ प्रसीदत प्रसन्ना: भवत छमध्वं स्व-स्व स्थानं गच्छत॥
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विष्णु पूजन मंत्र

तिल-यव : एते यवतिलाः ॐ भूर्भुवः स्व: भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ॥
जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयानि ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
फूल चंदन : इदं सचंदनपुष्पं ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
तिल-यव : एते यवतिलाः ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
तुलसी : एतानि तुलसीदलानि ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
जल : एतानि गंधपुष्पधूपदीपताम्बूल यथाभागनैवेद्यं ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
जल : आचमनीयं पुनराचमनीयम् ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
फूल : पुष्पांजलिं ॐ भूर्भुवः स्व: भगवते श्री विष्णवे नमः॥
विसर्जन : ॐ भूर्भुवः स्व: भगवन् विष्णो पूजितोसि प्रसीद प्रसन्नो भव छमस्व स्व स्थानं गच्छ ॥
फिर संकल्प द्रव्य त्रिकुशा, पान, सुपारी, तिल, जल, पुष्प, चंदन, द्रव्य आदि लेकर संकल्प करे –

पूजा संकल्प मंत्र


ॐ अस्यां रात्रौ मासानां मासोत्तमे फाल्गुने मासे कृष्णे पक्षे चतुर्दश्यां तिथौ ………… वासरे ……….. गोत्रस्य मम श्री ……….. शर्मणः/वर्मणः/गुप्तः (सपत्नीकः) सपरिवारस्य ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्त्यर्थं शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये ॥
दशदिक्पाल, नवग्रह, शिवपरिवार आदि की पूजा करके पूजा विधि के अनुसार भी पूजा की जा सकती है।

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संक्षिप्त दशदिक्पाल और नवग्रह पूजन विधि मंत्र


दश-दिक्पाल : इदं अक्षतं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीइन्द्रादि दशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत ॥


आवाहन करके सभी वस्तुओं से पूजा करें


पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीइन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीय-पुनराचमनीयानि , इदमनुलेपनं, इदमक्षतं, इदं पुष्पं, एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल यथाभागं नैवेद्यं, इदमाचमनीयं, इदं दक्षिणा-द्रव्यं, एष पुष्पाञ्जलिः – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीइन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः॥
नवग्रह : इदं अक्षतं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यादि नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत ॥ आवाहन करके सभी वस्तुओं से पूजा करें
पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः, एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीय-पुनराचमनीयानि, इदमनुलेपनं, इदमक्षतं, इदं पुष्पं, एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल यथाभागं नैवेद्यं, इदमाचमनीयं, इदं दक्षिणा-द्रव्यं, एष पुष्पाञ्जलिः – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः॥
फिर गणेशादि देवताओं की पूजा शिवपूजन विधि के अनुसार करें

यदि घर में नये शिवलिंग या पार्थिव प्रतिमा की पूजा करनी हो तो पहले प्राण-प्रतिष्ठा करें और ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टंयज्ञ, समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामों 3 प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं भूर्भुवःस्वः भगवन् शिव इहागच्छहातिष्ठ ॥
(पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमा या लिंग में पुनः प्रतिष्ठा न करें)
इसके बाद भजन, आरती आदि के बाद पूजा संपन्न करें।

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