मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी इस साल भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। तब दोनों देशों ने दुनिया में फैल रहे आतंकवाद को मानवता के लिए गंभीर खतरा बताते हुए सीमा पार आतंकवाद को खत्म करने के लिए ठोस कार्रवाई पर जोर दिया था। दरअसल, भारत-मिस्र के करीब 76 साल पुराने राजनयिक संबंध अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल के बावजूद अडिग रहे हैं। दोनों गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य हैं। दोनों के बीच 1978 में द्विपक्षीय व्यापार समझौते के बाद संबंधों में और प्रगाढ़ता आई। दोनों के बीच कारोबार 7.26 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसे अगले पांच साल में बढ़ाकर 12 अरब डॉलर करने का लक्ष्य है। भारत की करीब 50 कंपनियों ने मिस्र में केमिकल, ऊर्जा, कपड़ा उद्योग व एग्री बिजनेस में 3.15 अरब डॉलर का निवेश किया है। खाद व गैस की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत मिस्र से इनका कारोबार बढ़ाना चाहता है तो मिस्र रक्षा सामग्री के साथ भारत से गेहूं की खरीद का इच्छुक है। मजबूत संबंधों के चलते ही निर्यात पर पाबंदी के बावजूद भारत ने मिस्र को पिछले साल 61,500 टन गेहूं भेजा था।
मिस्र लंबे समय से विदेशी मुद्री की कमी से जूझ रहा है। वह भारत के साथ डॉलर के अलावा दूसरी मुद्रा में कारोबार करना चाहता है। जानकारों का कहना है कि भारत आने वाले समय में मिस्र के लिए अरबों डॉलर की क्रेडिट लाइन खोल सकता है। मोदी की मिस्र यात्रा के दौरान इस बारे में समझौते की संभावना है। अगर यह समझौता हुआ तो मिस्र, भारत को भारतीय मुद्रा देकर सामान खरीदेगा। मिस्र से सामान के आयात के बदले भारत भुगतान के रूप में उसे अपना सामान भेजेगा। स्वेज नहर मिस्र का महत्त्वपूर्ण जल मार्ग है। वैश्विक कारोबार का 12 फीसदी इसी मार्ग से होता है। अगर भारत इस मार्ग पर मिस्र से समझौते में कामयाब रहता है तो उसके लिए यूरोप और अफ्रीका का नया प्रवेश द्वार खुल जाएगा।