पूजनीय है ‘गुदड़ी’
रामकुंडा की चमत्कारी मानी जाने वाली ‘गूदड़ी’ आज भी आश्रम में पूजी जाती है, जिसे संत ने अपने तप की ऊर्जा प्रदान की थी। विक्रम संवत 1756 में महारानी मनसुखदे ने राममंदिर की नींव रखी, जो चार वर्षों में पूर्ण हुआ। यह क्षेत्र का प्रथम राम मंदिर माना जाता है। साथ ही चतुर्भुज विष्णु मंदिर, आवासीय पाठशालाएं, गोशाला और पठन-भवनों का निर्माण भी जनसहयोग से हुआ। रामकुंडा को रियासतकाल में चार खडीनें दी गईं। पालीवालों के पलायन के बाद उनके वैष्णव मंदिर भी रामकुंडा के संरक्षण में कर दिए गए। सिंध के यात्रियों और व्यापारियों के लिए यह आश्रयस्थली रहा। सिंध के किलोडा मियां ने यहां दो मंजिला महल बनवाया, जिसमें अनंतराम की गूदड़ी, बाघम्बर और माला सुरक्षित हैं।
श्रद्धा और भक्ति का केंद्र
रामकुंडा ट्रस्ट समिति के अध्यक्ष थिरपालदास वैष्णव बताते हैं कि हर साल चैत्र नवरात्र में अखंड रामायण पाठ, सत्संग और रामनवमी पर विशाल मेला होता है। विष्णु महायज्ञ की पूर्णाहुति पूर्व राजघराने की ओर से होती रही है। रामकुंडा आज भी श्रद्धा, परंपरा और चमत्कारों का संगम बना हुआ है