निगम के तत्कालीन महापौर गोविंद सिंह टांक ने अपने कार्यकाल के समय अलग-अलग इतिहासकारों से वार्ता कर इतिहास का संकलन किया था। सभी ने शहर की संस्कृति, कला एवं इतिहास को ध्यान में रखते हुए इसे बारीकी से तैयार किया। इतिहासकारों ने फाइल को निगम को सुपुर्द भी कर दिया, लेकिन वे अब तक आगे का काम नहीं कर पाए। इस बीच, निगम बोर्ड की समाप्ति से बाद अधिकारियों ने भी इसमें कोई खास रूचि नहीं दिखाई।
हर गली के बाहर लगाने हैं इतिहास उकेरे हुए पत्थर
अंदरुनी शहर की हर गली का इतिहास जुटाकर निगम ने अच्छी पहल की, लेकिन इन्हें पत्थर पर उकेरकर गलियों में लगवा नहीं पाया। वर्तमान में शहर में 70 वार्ड है, शहर विस्तार के बाद यह संख्या 80 हो गई। इन वार्डाें में 18 वार्ड अंदरुनी शहर के है। इनमें प्रमुख रूप से हर गली का इतिहास है, इनमें महल, गोखड़े, हवेलियां प्रमुख रूप से है। प्रमुख कवि, इतिहासकार के साथ कला संस्कृति के नाम से भी कई गलियां हैं, जिसको पर्यटकों व युवा पीढ़ी को अवगत करवाना है।
इतिहासकारों ने उपलब्ध करवाई झील-तालाब व कला, संस्कृति की जानकारी
इतिहासकारों ने निगम को उपलब्ध करवाए इतिहास में उदयपुर की कला, संस्कृति व झील तालाब के बारे में जानकारी दी। उन्होंने उदयपुर के स्थापना से लेकर यहां के महल व प्रमुख गलियों का उल्लेख किया हैं। कौन सी गली किसी नाम से व क्यों जानी जाती है। किस झील का इतिहास क्या है? इसके पानी की कनेक्टिविटी क्या है? सभी झीलें एक दूसरे से कैसे लिंक है। उन्होंने उदयपुर के स्थापना दिवस पर लिखा कि महाराणा उदय सिंह ने 1553 में उदयपुर शहर की स्थापना मेवाड़ की नई राजधानी के रूप में की थी, तभी से ये शहर मेवाड़ की शान और धरोहर का प्रतीक है। उदयपुर एक पर्यटन स्थल है और अपने इतिहास, संस्कृति, दर्शनीय स्थानों, महलों के लिए जाना जाता है। शहर के चारों तरफ झीलें हैं, जिनमें फतहसागर, पिछोला झील, स्वरूप सागर, रंगसागर और दूध तलाई है। इनके अलावा ऐतिहासिक किलों-महलों, संग्रहालयों, दीर्घाओं, प्राकृतिक स्थानों, उद्यानों, स्थापत्य मंदिरों के साथ-साथ पारंपरिक मेलों, त्योहारों और संरचनाओं के लिए भी जाना जाता है।