हवाई अड्डे तो बनते जा रहे हैं, एयरलाइंस कहां हैं?
मधुरेन्द्र सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार


इस साल दो बड़े अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे चालू होने जा रहे हैं। एक है जेवर हवाई अड्डा और दूसरा नवी मुंबई। दोनों ही भारत सरकार तथा राज्य सरकारों की महत्वाकांक्षी योजनाओं का परिणाम है। नोएडा में 7200 एकड़ में बनने वाले जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 29,650 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है, वहीं नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 16,700 करोड़ रुपए खर्च होंगे और यह 1160 एकड़ में बन रहा है। ये दोनों आधुनिकतम सुविधाओं से लैस और दुनिया के बेहतरीन हवाई अड्डों में से होंगे। मुंबई हवाई अड्डे की सालाना यात्रियों के लाने ले जाने की क्षमता जहां दो करोड़ सालाना होगी, वहीं जेवर की योजना प्रतिदिन 65 उड़ानें संचालित करने की है जिनमें 62 घरेलू, 2 अंतरराष्ट्रीय और 1 कार्गो उड़ान। इसकी क्षमता कुल 7 करोड़ यात्रियों को लाने ले जाने की है। अभी देश में करीब 150 हवाई अड्डे हैं जबकि 2014 में यह आंकड़ा 70 था। अब सवाल उठता है कि इतने यात्री आएंगे कहां से और कितनी एयरलाइंस उनके लिए चाहिए?
90 के दशक में जब देश में उदारीकरण शुरू हुआ तो इसका असर हवाई यात्रा पर भी पड़ा और कई विमानन कंपनियां अस्तित्व में आईं। इनमें ईस्ट वेस्ट एयरलाइंस, जेट एयरवेज, दमानिया, मोदीलुफ्त, एनईपीसी, सहारा थीं। उस समय ये बहुत कम किराये पर यात्रियों को लाने ले जाने की सुविधा उपलब्ध करा रही थीं। 2000 के बाद एयर डेक्कन, गो एयर और किंगफिशर भी उतरीं। यानी भारतीय आकाश में एयरलाइंसों का जलवा हो गया। हवाई अड्डे छोटे पडऩे लगे और हवाई अड्डों की ओर जाने वाले यात्रियों की तादाद बढ़ती चली गई। लेकिन बाद में एयरलाइंस एक के बाद एक गायब होने लगीं। नब्बे के दशक में शुरू हुईं एविएशन कंपनियां या तो बंद हो गईं या फिर उनका विलय हो गया। किंगफिशर और जेट एयरवेज के बंद हो जाने से एविएशन इंडस्ट्री को बड़ा धक्का लगा। बड़े पैमाने पर लोगों का रोजगार छिन गया। सिर्फ जेट एयरवेज के बंद हो जाने से 20,000 लोगों का रोजगार छिन गया। 2005 में शुरू हुई किंगफिशर एयरलाइंस शुरू से ही घाटे में चल रही थी और इसका अंत अक्टूबर 2012 में हो गया जब यह कंपनी कर्ज में डूब गई और इसके प्रमोटर विजय माल्या ने देश छोड़ दिया।
एक और बड़ी एयरलाइंस विस्तारा जो टाटा समूह और सिंगापुर एयरलाइंस के बीच समझौते से बनी थी, 2024 में एयर इंडिया का हिस्सा बन गई क्योंकि एयर इंडिया को टाटा समूह ने खरीद लिया था और वह दो एयरलाइंस चलाना नहीं चाहते थे। टाटा ने जो एयर एशिया को भारत में मलेशियाई कंपनी के साथ मिलकर चला रही थी, घरेलू उड़ानों के लिए बंद कर दिया। अब भारत के आकाश में मुख्य रूप से एयर इंडिया के अलावा बजट एयरलाइंस इंडिगो और स्पाइस जेट ही हैं। शेयर बाजार के दिग्गज राकेश झुनझुनवाला ने अकासा एयर स्थापित किया था। उनके निधन के बाद हालांकि यह चल रही है लेकिन सीमित रूटों पर। एयर इंडिया एक्सप्रेस भारत सरकार की ही कंपनी थी जो टाटा समूह को बेच दी गई थी। अब यह कुछ ही रूट पर दिख रही है और इसकी किसी से स्पर्धा नहीं है। इतनी सारी एयरलाइंस के अस्तित्व से गायब हो जाने के कारण सबसे बड़ी समस्या तो यात्रियों के सामने आ खड़ी हुई जो कम किराये पर यात्रा करते रहे थे। पिछले साल से हवाई किराया काफी बढ़ गया है और कुछ रूट पर तो आसमान छूने लगा है। इससे मिडिल क्लास को बड़ा धक्का लगा क्योंकि उसे हवाई यात्रा की आदत पड़ती जा रही थी। लेकिन उससे भी ज्यादा बड़ी बात यह थी कि इतने सारे हवाई अड्डों के निर्माण और विस्तार के बारे में सोचने का वक्त आ गया है।
सवाल यह भी उठ रहे हैं कि सरकार ने ‘उड़े देश का हर नागरिक’ (उड़ान) योजना के तहत देश के कोने-कोने में हवाई अड्डे बनाना शुरू किया था, उसका क्या हश्र होगा? इतनी बड़ी जनसंख्या को विमान यात्रा कराने के लिए जितने विमान और एयरलाइंस चाहिए वो इस समय उपलब्ध नहीं है। विमानन क्षेत्र में स्पर्धा खत्म सी हो गई है और टिकट महंगे हो गए हैं। ग्राहकों के लिए अब ज्यादा विकल्प भी नहीं बचे और वे ज्यादा किराया देने के लिए बाध्य भी हो रहे हैं। इससे एविएशन क्षेत्र में विस्तार की संभावना पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। यह सही है कि ये जो तीन प्रमुख एयरलाइंस हैं वे मजबूत हो रही हैं और वैश्विक स्पर्धा में तनकर खड़ी हो रही हैं लेकिन घरेलू यात्रियों के लिए यह कठिन परिस्थिति है। इसके साथ ही सरकार के लिए भी क्योंकि जितनी ज्यादा विमानन कंपनियां होंगी, उतना ही टैक्स भी मिलेगा।
वैसे सरकार के लिए यह राहत की बात है कि उसने एयर इंडिया से छुटकारा पा लिया है जिसे जिंदा रखने के लिए 60,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च किए थे। जो अन्य एयरलाइंस बंद हो गईं, उनसे भी सरकार को धक्का लगा क्योंकि उन्हें सरकारी बैंकों से भारी ऋण मिला था। अब देश में कई ऐसे हवाई अड्डे मसलन तेजू, कुल्लू वगैरह ऐसे हैं जिनमें कोई नियमित विमान सेवा ही नहीं है। अब और नए एयरपोर्ट बनते तो जा रहे हैं लेकिन एयरलाइंस की कमी साफ दिख रही है। एयरलाइंस का बिजनेस बेहद खर्चीला है और इसमें मुनाफे के लिए वर्षों टिके रहना पड़ता है। यह बहुत कठिन है और इसमें सरकार की मदद चाहिए। सरकार को मदद के तौर पर टैक्सों में कटौती करनी होगी। हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले फ्यूल की ड्यूटी कम करनी होगी। बिना इंसेटिव दिए नए एयरलाइंस मैदान में उतरेंगी नहीं और ये विशालकाय एयरपोर्ट ऐसे ही आधे खाली पड़े रहेंगे।
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