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क्या होता है दिवाला निकलना, जिस मामले में Court पहुंचे Fortis के पूर्व प्रमोटर, पहले अमीर कारोबारियों में होती थी गिनती

दिवाला निकलना (Bankruptcy) एक ऐसी कानूनी स्थिति है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने कर्जों को चुकाने में असमर्थ हो जाती है।

भारतApr 22, 2025 / 12:51 pm

Devika Chatraj

दिवाला निकलना, जिसे अंग्रेजी में ‘बैंकरप्सी’ कहा जाता है, एक ऐसी कानूनी स्थिति है जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने कर्जों का भुगतान करने में असमर्थ हो जाती है। यह तब होता है जब देनदार अपनी संपत्तियों से लेनदारों के बकाया राशि को चुकाने में नाकाम रहता है, जिसके बाद वह अदालत में दिवालियापन की अर्जी दाखिल कर सकता है। इस प्रक्रिया में कोर्ट (Court) देनदार की संपत्तियों को बेचकर या पुनर्गठन के जरिए कर्ज चुकाने की व्यवस्था करता है। हाल ही में, फोर्टिस (Fortis) हेल्थकेयर के पूर्व प्रमोटर शिविंदर मोहन सिंह, जो कभी भारत के अमीर कारोबारियों में शुमार थे, ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में व्यक्तिगत दिवालियापन की अर्जी दायर की है। दाइची सांक्यो विवाद और रेलिगेयर में कथित कुप्रबंधन को अपनी आर्थिक बदहाली का कारण बताते हुए, सिंह ने इस कानूनी रास्ते को चुना, जिसने व्यापार जगत में हलचल मचा दी है।

दिवाला निकलना क्या है?

दिवाला निकलना (Bankruptcy) एक ऐसी कानूनी स्थिति है, जिसमें कोई व्यक्ति या कंपनी अपने कर्जों को चुकाने में असमर्थ हो जाती है। जब कोई व्यक्ति या संगठन अपनी देनदारियों (liabilities) को अपनी संपत्तियों (assets) से पूरा नहीं कर पाता, तो वह दिवालिया घोषित हो सकता है। भारत में, व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट दिवालियापन से संबंधित मामले इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 के तहत निपटाए जाते हैं।

कब माना जाता है किसी को दिवालिया

किसी व्यक्ति या कंपनी को दिवालिया तब माना जाता है, जब वह अपने वित्तीय दायित्वों, यानी कर्जों का भुगतान करने में पूरी तरह असमर्थ हो जाए। भारत में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 के तहत दिवालियापन की स्थिति को निम्नलिखित आधारों पर परिभाषित किया जाता है।
> कर्ज चुकाने में असमर्थता

> लेनदारों की अर्जी

> स्वैच्छिक आवेदन

> संपत्ति से अधिक देनदारी

> कानूनी प्रक्रिया

शिविंदर मोहन सिंह मामला

शिविंदर मोहन सिंह, जो कभी भारत के सबसे अमीर कारोबारियों में शुमार थे, ने हाल ही में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में व्यक्तिगत दिवालियापन की अर्जी दाखिल की है। यह खबर 21 अप्रैल 2025 को सामने आई, जिसने कारोबारी जगत में हलचल मचा दी। शिविंदर और उनके भाई मलविंदर मोहन सिंह ने फोर्टिस हेल्थकेयर और रेलिगेयर जैसी कंपनियों के जरिए स्वास्थ्य और वित्तीय सेवा क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया था। लेकिन कई विवादों और कानूनी उलझनों ने उनकी वित्तीय स्थिति को चरमरा दिया।

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