बिना भेदभाव, सिर्फ सेवा भाव
प्याऊ की खास बात ये है कि इनमें सेवा का कोई भेदभाव नहीं होता। कोई जात-पात या धर्म नहीं देखा जाता – जो आए, उसका स्वागत ठंडे पानी से होता है। कई बार यह भी देखने को मिला है कि लोग अपने घर के बाहर प्याऊ रखकर खुद निगरानी करते हैं कि कोई राहगीर प्यासा न लौटे। वाहन चालक आइदानसिंह का कहना है कि वह रोज 8-10 प्याऊ से गुजरते हैं। कई बार तेज धूप में जब शरीर जवाब देने लगता है, तो प्याऊ का एक घूंट ठंडा पानी नई ऊर्जा दे देता है। ये छोटे-छोटे काम असल में बड़ी सेवा हैं। समाजसेवी शंकरलाल का कहना है कि उनके परिवार ने वर्षों से हर गर्मियों में एक अस्थायी प्याऊ की जिम्मेदारी ली हुई है। संतोष मिलता है कि किसी की प्यास हमारे कारण बुझती है।