योजना में सामने आई गड़बड़ियों के बाद अब राज्य सरकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक की मदद से क्लेम्स का विश्लेषण कर रही है। इससे यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई भी अस्पताल, डायग्नोस्टिक सेंटर या फार्मा स्टोर लाभार्थियों के नाम पर फर्जी क्लेम न कर सके। जिन संस्थानों पर संदेह है, उनके खिलाफ जांच शुरू की गई है और दोषी पाए जाने पर डिएम्पेनलमेंट, पेनल्टी और रिकवरी की कार्यवाही भी की जा चुकी है।
ओटीपी मांगे तो सतर्क हो जाइए! आरजीएचएस में ठगी के नए तरीके आए सामने
हालांकि, यह तकनीकी निगरानी केवल एक पक्ष है। योजना की सफलता और पारदर्शिता के लिए लाभार्थियों की सतर्कता भी उतनी ही जरूरी है। चूंकि आरजीएचएस पूरी तरह कैशलेस योजना है, ऐसे में लाभार्थियों को चाहिए कि वे अपने आरजीएचएस कार्ड, ओटीपी और ओपीडी वॉलेट जैसी सुविधाओं को सुरक्षित रखें। निजी अस्पताल या फार्मेसी द्वारा ओटीपी मांगने की स्थिति में सुनिश्चित करें कि यह अधिकृत व्यक्ति को ही दिया गया है।
फर्जी स्लिप, फालतू दवाएं और बेवजह सर्जरी
जैन ने यह भी बताया कि कई बार लाभार्थियों को अनावश्यक रूप से आईपीडी में भर्ती किया गया या बिना उचित कारण दवाएं और जांच लिखी गईं। उन्होंने सलाह दी कि यदि किसी को संदेह हो कि उनके नाम से फर्जी उपचार या दवा वितरण हो रहा है, तो तुरंत हेल्पलाइन 181 पर शिकायत करें या आरजीएचएस पोर्टल के माध्यम से रिपोर्ट करें। भविष्य में योजना को और पारदर्शी बनाने के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन को भी शामिल किया जा रहा है, जिससे अनधिकृत क्लेम्स को और अधिक प्रभावी ढंग से रोका जा सकेगा। राज्य सरकार केंद्र सरकार से अनुमति प्राप्त कर इस प्रणाली को शीघ्र लागू करने जा रही है।
फार्मासिस्ट और फार्मा दुकानदारों के लिए भी सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। ओपीडी स्लिप पर स्पष्ट रूप से लाभार्थी का नाम, चिकित्सक का हस्ताक्षर और आरएमसी नंबर जांचने की हिदायत दी गई है। इससे फर्जी स्लिप के आधार पर दवाओं के वितरण को रोका जा सकेगा।
सरकार और लाभार्थी दोनों अपनी जिम्मेदारी को समझें
मार्च और अप्रैल में सरकार ने संबंधित पक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से योजना में सुधार और जागरूकता फैलाने के लिए विस्तार से चर्चा की। यह स्पष्ट संकेत है कि सरकार इस योजना को सही दिशा में ले जाने के लिए तकनीक, पारदर्शिता और जन-जागरूकता, तीनों स्तरों पर काम कर रही है।
आरजीएचएस जैसी कल्याणकारी योजनाएं तभी प्रभावी बन सकती हैं जब सरकार और लाभार्थी दोनों अपनी जिम्मेदारी को समझें। तकनीक अपनी जगह है, लेकिन योजना की असली सुरक्षा सतर्क नागरिकों के हाथ में है।