धौलपुर. जिले में पशु चिकित्सा सेवाओं पर सरकार की अकर्मण्यता भारी पड़ रही है। जिसका ही नतीजा है कि जिले में संचालित होने वाले 150 पशु चिकित्सा केन्द्रों मेंं से 77 संस्थाओं में कुछ के ही भवन निर्मित हैं, तो कुछ प्रोसेस में हैं तो वहीं कई पशु चिकित्सा केन्द्र ऐसे है जो जुगाड़-तुगाड़ से और खाली जमीनों पर संचालित हो रहे हैं। शेष 73 केन्द्र ऐसे भी हैं जिनके पास ना भवन है और ना जमीन चिकित्सा स्टॉफ की बात तो दूर की।
सरकार कुछ कल्याणकारी योजनाएं चलाकर अपने कार्यों का ढिंढोरा पीटती नजर आती है, लेकिन धरातल पर दिखने वाला परिदृश्य कटु सत्यता का परिचय कराता है। ऐसा ही हाल जिले में पशु स्वास्थ्य सुविधाओं का है। जहां सरकार की उदासीनता के कारण देहात क्षेत्रों में पशुपालकों को नित रोज परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। जिले में 2 बहुउद्देशीय चिकित्सालय, 11 प्रथम श्रेणी पशु चिकित्सालय, 35 पशु चिकित्सालय, 99 पशु चिकित्सा उपकेन्द्र, 3 जिला मोबाइल यूनिट सहित 150 संस्थाएं पशुओं के इलाज के लिए संचालित की जा रही हैं। लेकिन आपको बता दें कि इन 150 संस्थाओं में 77 संस्थाएं ऐसी हैं जो वर्तमान में कुछ अपने भवनों में तो कुछ किराए के भवन, तो कुछ दूसरे विभाग के भवन, तो कुछ पंचायतों के भवन में, तो कुछ खाली परिसरों में अस्थायी रूप से संचालित हो रहे हैं। स्थिति यह है कि जुगाड़ कर जैसे-तैसे चलाए जा रहे इन केन्द्रों में पशुओं के खड़े होने तक की जगह नहीं है। इसके बाद भी सरकारी स्तर पर इन्हें जमीने से लेकर बजट तक आवंटित नहीं हो पा रहा है। यह स्थिति पिछले दस सालों से बनी हुई है। इसके चलते पशु चिकित्सा केन्द्रों की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है
कहीं भवन तो कहीं जुगाड़ से चल रहा काम जिले में पशु चिकित्सा सेवा के हालात आप इस हिसाब से समझ सकते हैं कि जिले में संचालित इन 77 पशु चिकित्सा संस्थाओं में से भी केवल 57 पशु चिकित्सा संस्थाएं कार्यरत हैं। जिनमें से 54 संस्थाओं के खुद के भवन निर्मित हैं। शेष 3 संस्थाओं के निर्माण कार्य अभी स्वीकृत हुए हैं। तो वहीं इन 77 संस्थाओं में से 20 संस्थाएं या तो किराए के भवन में संचालित हो रहे हैं या खाली जगहों में या फिर जुगाड़-तुगाड़ से। विभाग ने इन 20 संस्थाओं के लिए भवन निर्माण को प्रस्ताव भेज दिया गया लेकिन शासन की अकर्मण्यता पशु पालकों पर भारी पड़ रही है।
73 पशु चिकित्सा केन्द्रों का अता पता नहीं जिले में 77 ऐसे चिकित्सा केन्द्र संचालित हैं जहां चिकित्सा के नाम पर कुछ ना कुछ तो किया जा रहा है, लेकिन इसके अलावा 73 पशु चिकित्सा केन्द्र ऐसे हैं जिनका कोई अता-पता नहीं। सिर्फ कागजों में ही इनका संचालन किया हो रहा है। जिसका कारण सरकार से बजट ना मिलना, जमीन का आवंटन ना करना है। सरकार ने पशु उप स्वास्थ्य केन्द्र खोलने की घोषणा तो कर दी, लेकिन उनके लिए अभी तक बजट उपलब्ध कराने में नाकाम रही है।
कई केन्द्रों के पास जगह तक नहीं जिले में पशु चिकित्सा केन्द्र जमीन के अभाव में पशुपालकों को लाभ नहीं मिल पा रहा। यह स्थिति जिले के लगभग सभी ब्लॉकों में स्वीकृत पशु चिकित्सा केन्द्रों की है। कुछ जगहों पर तो जगह ही उपलब्धता ही नहीं हो पाई। ऐसे में जमीन के अभाव में चिकित्साकर्मी ऐसे ही पशु पालकों से मिलकर उनके पशुओं का इलाज उनके यहां ही जाकर करते हैं।
30 स्वास्थ्य केन्द्र में आकृयाशील स्टॉफ नहीं जिले में संचालित इन १५० पशु स्वास्थ्य केन्द्रों में 30 स्वास्थ्य केन्द्र आकृयाशील स्टॉफ के अभाव से जूझ रहे हैं। जिले में मिल रही पशु पालकों को असुविधा के पीछे कम चिकित्सा स्टॉफ का होना भी एक कारण है। जिले में कुल संयुक्त निदेशक, उप निदेशक, वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी, पशु चिकित्सा अधिकारी, सहायक सूचना अधिकारी, पशु चिकित्सा सहायकों के स्वीकृत १०७ पदों में से केवल ५० पद ही भरे हुए हैं। यानी 57 पद रिक्त हैं। इनमें से ६२ पशु चिकित्सकों में से केवल ३३ पशु चिकित्सक ही तैनात हैं। अधिकतर संस्थाएं एक ही पशुधन निरीक्षक अथवा चिकित्सक संचालित कर रहे हैं।
ऐसे पशु चिकित्सालयों की वजहेंसरकार ने नए पशु चिकित्सा उपकेन्द्र खोले, लेकिन भवन निर्माण की व्यवस्था नहीं की। पशु चिकित्सालयों को क्रमोन्नत किया गया, लेकिन भवन निर्माण की व्यवस्था नहीं की गई।बजट की कमी की वजह से चिकित्सालय जर्जर भवन में संचालित हो रहे हैं।
ऐसे पशु चिकित्सालयों से जुड़ी कुछ और खास बातें।पशु चिकित्सक अलग-अलग जगहों पर केन्द्र बनाकर पशुओं का इलाज कर रहे हैं।