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भोपाल

प्रशासन की बड़ी तैयारी, अब पंचायतों में विकसित होंगे नगर वन

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इस खतरे से निपटने के लिए नए सिरे से ग्राम वन विकसित करने की ओर बढ़ रहा है। अब तक यह योजना चुनिंदा पंचायतों के लिए थी। पर अब इसमें बदलाव कर अगले 4 साल में सभी पंचायतों में नए वन क्षेत्र विकसित किए जाएंगे।

भोपालMar 04, 2025 / 09:59 am

Avantika Pandey

MP News

MP News , city forests developed in panchayats

MP News : मध्यप्रदेश में 23 हजार पंचायत हैं। इनकी 75 फीसदी पंचायतों में आबादी की जमीन से ग्रीन बेल्ट गायब हो गया। बची पंचायत(Panchayat) भी इसी गंभीर खतरे से जूझ रही है। इसके लिए बढ़ती आबादी, संयुक्त परिवारों का स्वतंत्र इकाई के रूप में स्थापित होना और खेती के लिए शत-प्रतिशत जमीन का उपयोग करने जैसे कारण शामिल हैं। इस खतरे ने गांवों की बड़ी आबादी को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इस खतरे से निपटने के लिए नए सिरे से ग्राम वन विकसित करने की ओर बढ़ रहा है। अब तक यह योजना चुनिंदा पंचायतों के लिए थी। पर अब इसमें बदलाव कर अगले 4 साल में सभी पंचायतों में नए वन क्षेत्र विकसित किए जाएंगे।
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प्रदेश(MP News) में 23 हजार पंचायतों(Panchayat) में प्रत्येक में पहले दो से 6 गांव व टोले मजरे थे, जिनकी संख्या अब 10 से 15 पहुंच गई। इसकी वजह आबादी बढ़ना है। पंचायत व गांवों में बसने वाले संयुक्त परिवार स्वतंत्र इकाई के रूप में अस्तित्व में आ रहे हैं, जिससे बसाहटों का दायरा बीते 20 साल में तेजी से बढ़ा। पंचायतों से जुड़े गांवों की खाली निजी व सरकारी जमीनों का उपयोग हो चुका है। वहीं बढ़ती आबादी ने परिवारों की जरूरतें बढ़ा दी है, जिसके कारण ऐसे परिवारों की खाली पड़ी जमीनों का उपयोग खेती-किसानी में होने लगा है। इस तरह जमीनों पर लगे वर्षों पुराने पेड़, जो ग्रीन लगभग प्रत्येक पंचायतों में स्वत: ही ग्रीन बेल्ट की जरूरतों को पूरा करते थे, उन्हें काटा जा चुका है।
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पौधे लगाने में ऐसे हुआ खर्च

2021 में पौधे लगाने के नाम पर सरकार ने 362 करोड़ रुपए खर्च किए। ये पौधे वन और ग्रामीण क्षेत्रों में लगाए।
2016-2017 में सरकार ने एक पौधे पर औसतन 56 रुपए खर्च कर 6 करोड़ पौधे लगाए। इस तरह 393 करोड़ खर्च कर दिए।

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15 वर्षों में हरियाली के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च

पंचायतों के बर्बाद होते ग्रीन बेल्ट को अफसरों ने गंभीरता से नहीं लिया। इससे वर्षों पुराने बरगद, पीपल, नीम और इमली जैसी प्रजाति के पेड़ों की बलि ले ली गई। दूसरी तरफ बीते 15 वर्षों से प्रत्येक पंचायतों में पौधे लगाने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, यह राशि मनरेगा समेत अन्य मद से खर्च की गई। कार्यक्रम की अफसरों ने कभी निगरानी नहीं कराई। नतीजा, करोड़ों रुपये तो खर्च हो गए। अब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग नए सिरे से इन खामियों को दूर करने में जुटा है। 
वन भूमि पर भारी अतिक्रमण: पंचायतों से सटी वन भूमि पर भी अतिक्रमण के मामले बढ़े, 21 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में अतिक्रमण चिह्नित, इसके अलावा भी हजारों एकड़ पर कब्जा लेकिन रिकार्ड में नहीं।

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