कुतुबखाना लाइब्रेरी की जगह बना था घंटाघर
जहां आज घंटाघर खड़ा है, वहां पहले कुतुबखाना नामक पुस्तकालय हुआ करता था। यह एक बड़ी इमारत थी, जिसके नीचे कई दुकानें थीं और लोग वहां किताबें पढ़ने आते थे। वर्ष 1965 में आकाशीय बिजली गिरने से यह इमारत पूरी तरह नष्ट हो गई। इसके बाद पुस्तकालय को वहां से हटा दिया गया और 1975 में उस स्थान पर घंटाघर का निर्माण कराया गया।
घंटाघर का इतिहास और मरम्मत की कहानी
1975 में घंटाघर का निर्माण हुआ और 1977 में इसमें घंटा लगाया गया। रखरखाव के अभाव में सबसे पहले घंटा खराब हुआ, फिर घड़ी बंद हो गई। 2020 में स्मार्ट सिटी योजना के तहत घंटाघर के कायाकल्प की योजना बनी। 2022 में चेन्नई की कंपनी इंडियन क्लॉक्स को 9 फुट की नई घड़ी बनाने का ठेका दिया गया। दावा किया गया था कि घंटे की आवाज एक किलोमीटर तक सुनाई देगी।
2022 में घंटाघर दोबारा चालू हुआ, लेकिन अब फिर से बंद पड़ा है।
कभी शहर की पहचान थे तीन घंटाघर, अब बचा सिर्फ एक
बरेली में कभी तीन बड़े घंटाघर (कुतुबखाना, साहू गोपीनाथ चौक और बरेली कॉलेज) थे। साल 2000 से पहले तीनों घंटाघरों की घड़ियां समय बताती थीं और उनकी आवाज गूंजती थी। लेकिन रखरखाव के अभाव में साहू गोपीनाथ चौक का घंटाघर खंडहर में बदल गया। बरेली कॉलेज का घंटाघर लंबे समय से बंद पड़ा है। कुतुबखाना घंटाघर का जीर्णोद्धार हुआ, लेकिन अब वह भी खामोश है।
स्मार्ट सिटी का दावा हुआ फेल
घंटाघर के जीर्णोद्धार के दौरान स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत दावा किया गया था कि हर घंटे इसकी आवाज गूंजेगी। लेकिन कुछ ही महीनों में घड़ी की सुइयां अटक गईं और घंटा भी बंद हो गया। शहरवासी पूछ रहे हैं कि 91 लाख रुपये खर्च होने के बावजूद भी घंटाघर आखिर क्यों नहीं चल रहा
अपर नगर आयुक्त का बयान
इस मामले में अपर नगर आयुक्त सुनील कुमार यादव का कहना है कि इसके लिए संबंधित अधिकारी को आदेश दे दिए हैं। घंटाघर की घड़ी को सही करने का काम जल्दी शुरू कराया जाएगा।