हजारों लोग बने इस अद्भूत पल के साक्षी शौर्य पर्व जमराबीज पर जबरी गैर में शामिल होने और साक्षी बनने हजारों लोग आधी रात को मेनार पहुंचे, जो भौर तक डटे रहे। गांव का मुख्य चौराहा ओंकारेश्वर चौक सतरंगी रोशनी से सजाया। ओंकारेश्वर चौराहे पर दिनभर रणबांकुरे रंजीत ढ़ोल बजाते रहे। 52 गांवों से मेनारिया ब्राह्मण के पंच मोतबीर साक्षी बने। जिसमें उदयपुर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ, चितौड़गढ़ सहित मध्यप्रदेश एवं गुजरात सहित अन्य राज्यों सहित विदेशी सैलानी मेनार पहुंचे।
जीवंत हो उठा मुगलों से युद्ध का परिदृश्य रात करीब पांच मशालची गांव के पांचों मुख्य मार्गों पर तैनात हुए। आधा घंटे बाद पांचों समूह ठाकुरजी मंदिर ओंकारेश्वर चबूतरे के पहुंचे। एक साथ-एक समय पर हवाई फायर और आतिशबाजी करते निकले। मुख्य चौक पर इतने पटाखे छूटे कि आग के बड़े गोले से दिखने लगे। बंदूकें गरजीं और शमशीरें भी चमचमाईं। महिलाएं सिर पर कलश धारण किए वीर रस के गीत गाती चल रही थी। मुख्य चौक में आतिशबाजी के बाद 5 दलों के सदस्यों ने हवाई फायर किए, गुलाल बरसने के साथ रंजीत ढोल ओंकारेश्वर जब उसे उतारे उनकी थाप पर जमरा घाटी की ओर बड़े जहां थम्भ चौक स्थित होली की आग को ठंडा करने के लिए अर्घ्य दी। जमरा घाटी पर कतारबद्ध जनसमूह के बीच मेनार और मेनारिया समाज के इतिहास का वाचन किया। पुनः ढोल के साथ यह सभी ओंकारेश्वर चबूतरा आए और तलवारे लिए घेरे में गोल-गोल नाचते हुए गैर नृत्य शुरू किया, इस बीच आग के गोलों और दोनों हाथों में तलवारों से कारनामों ने भी रोमांचित किया।
सवा 400 साल पुरानी पंरपरा का हो रहा निर्वहन मेनार गांव ने मुगलों से युद्ध लड़कर मेवाड़ की रक्षा में अहम भूमिका निभाई थी। मुगलों से हुए युद्ध में विजय की खुशी का जश्न मनाने के लिए हर साल बारुद की होली खेली जाती है। जिसमें मेनारिया ब्राह्मणों ने कुशल रणनीति से लड़ाई कर मुगलों से युद्ध कर चौकी को ध्वस्त किया था। इसी ख़ुशी में सवा 400 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है ।
मराठा साम्राज्य के पेशवा राव भी पहुंचे मेनार जमराबीज देखने मराठा साम्राज्य बाजीराव पेशवा के पपोत्रश्रीमंत पेशवा महाराज प्रभाकर नारायण राव भी मेनार पहुंचे, जहां ग्रामीणों ने स्वागत किया।