यूं तोड़े नियम
1.ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के शासन सचिव व आयुक्त डा. जोगाराम के 10 जनवरी को कलक्टर्स को जारी गाइडलाइन में ग्राम पंचायत के गठन के लिए गांव की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार न्यूनतम तीन हजार व अधिकतम 5500 तय की गई थी। इसमें केवल अनुसूचित क्षेत्र, केंद्र सरकार के अधिसूचित अनुसूचित क्षेत्र, सहरिया क्षेत्र यानी किशनगंज और शाहाबाद और चार मरुस्थलीय जिलों बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में ही न्यूनतम जनसंख्या दो व अधिकतम चार हजार तय की गई थी। इसके बावजूद जिले में दो से ढाई हजार जनसंख्या पर भी पंचायतें घोषित कर दी गई। 2. गाइड लाइन के अनुसार किसी गांव के निवासियों की मांग और प्रशासनिक दृष्टि से किसी गांव को किसी दूसरी ग्राम पंचायत में शामिल किया जा सकता है। लेकिन, जिलेभर में ग्रामीणों के हो रहे विरोध प्रदर्शन ही ये साबित कर रहे हैं कि पंचायतों के पुनर्गठन में ग्रामीणों की मांग ध्यान में नहीं रखी गई।
3. नियमानुसार किसी भी गांव को नई ग्राम पंचायत में तभी शामिल किया जा सकता था, जब ग्राम पंचायत मुख्यालय से उस गांव की दूरी छह किमी से अधिक नहीं हो। इस नियम को भी दरकिनार कर 8 से 10 किमी दूर भी नई पंचायत में शामिल कर दिया गया।
केस:1: 683 जनसंख्या पर पंचायत, तीनों नियम तोड़े
धोद में आंतरी गांव को नई ग्राम पंचायत बनाना प्रस्तावित किया गया है। इस गांव की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार महज 683 है। इसमें हर्ष पंचायत में शामिल मालियों की ढाणी गांव को भी शामिल किया गया है, जिसकी दूरी आठ किमी दूर है। आंतरी पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से मालियों की ढाणी के लोग उसमें शामिल भी नहीं होना चाहते। ऐसे में यहां नई पंचायत के गठन में जनसंख्या, ग्रामीणों की मांग व दूरी तीनों नियमों की धज्जियां उड़ा दी गई।
केस: 2 मापदंड पूरा नहीं
दांतारामगढ़ के माण्डोली गांव की जनसंख्या 2234 है। जनसंख्या का मापदंड पूरा नहीं करने पर भी इसे ग्राम पंचायत बनाया जा रहा है। इसे लेकर भी ग्रामीणों में आक्रोश है। ऐसे में इसमें भी ग्रामीणों की मांग व जनसंख्या के नियमों को दरकिनार किया गया। तीन दिन पहले विरोध प्रदर्शन कर ग्रामीणों ने मांडोली का प्रस्ताव रद्द कर रलावता को ही यथावत पंचायत रखने की मांग भी की।
.45 से ज्यादा पुनर्गठन, दर्जनों गांवों को आपत्तियां
जिले में 45 से ज्यादा ग्राम पंचायतों का परिसीमन प्रस्तावित किया गया है, जिसे लेकर दर्जनों गांवों में विरोध है। कई गांव कलेक्ट्रेट पर विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं। गौरतलब है कि ग्राम पंचायत व पंचायत समितियों के पुर्नगठन के प्रस्ताव एसडीएम की निगरानी में तैयार हुए हैं। इनमें तहसीलदार व पटवारी की अहम भूमिका रही है। ऐसे में इन अधिकारियों पर राजनीतिक व रसूख के प्रभाव में काम करने का भी आरोप लग रहा है।