जिले में ज्यादातर वैन अपनी उम्र सीमा पार कर चुकी हैं। इसके बावजूद भी गाड़ी मालिकों को कमाई की चिंता है। फिटनेस की तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता। नियमों के विपरीत वाहनों में सीएनजी किट के विकल्प के तौर पर एलपीजी सिलेंडर लगाकर बच्चों को ढोया जाता है। उसके ऊपर भी सीट लगा दी जाती है और इन पर मासूमों को बैठा दिया जाता है। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि समय-समय पर आरटीओ जांच करती है। इसके बावजूद भी वाहन संचालकों के हौंसले बुलंद हैं।
- वाहन के आगे व पीछे की तरफ स्कूल बस लिखा होना चाहिए।
- स्कूल वाहन पीले रंग से रंगी होनी चाहिए।
- सीटों पर क्षमता से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए।
- खिड़कियों पर विंडो बार (लोहे की छड़) लगी होनी चाहिए ताकि बच्चे सिर बाहर न निकाल सकें।
- वाहन में फस्र्ट एड बाक्स और अग्निशमन यंत्र होना चाहिए।
- वाहन पर स्कूल का नाम व टेलीफोन नंबर लिखा होना चाहिए।
- दरवाजे पर लाक और दो इमरजेंसी गेट होने चाहिए।
- बस चालक को भारी वाहन चलाने का कम से कम पांच वर्ष का अनुभव होना चाहिए।
- चालक के साथ एक सहायक और कम से कम एक अध्यापक या अध्यापिका होनी चाहिए।
- गति को नियंत्रित करने के लिए स्पीड अलार्म होना चाहिए।
नियम विरूद्ध चल रहे वाहनों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है। स्कूली वाहनों को लेकर अभियान चलाया जाएगा।
देवेश बाथम, एआरटीआ