युद्ध जीतने की सनक भारी पड़ रही निर्दोष नागरिकों पर
डॉ. खींवराज जांगिड़, प्रोफेसर और इजरायल मामलों के विशेषज्ञ


इजरायल और हमास ने युद्धविराम के दूसरे चरण का अवसर गंवा दिया है। गाजा में फिर से युद्ध छिड़ गया है। हमास ने इजरायल के साथ समझौते पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। वह चाहता था कि इजरायल गाजा से पीछे हटे तथा प्रारंभिक योजना के मुताबिक शेष 50 से अधिक बंधकों के लिए युद्ध समाप्त करने की घोषणा करे। युद्ध विराम के दौरान हमास हर हफ्ते शानदार समारोहों, परेडों और नारों के साथ बंधकों को रिहा करता था। भीड़ हमास के नारों पर उत्साहपूर्वक चिल्लाती थी। इजरायली नेता इन साप्ताहिक तमाशों को झुंझलाहट के साथ देखते रहे। उनके संयम से 33 बंधकों की रिहाई तो संभव हुई। हमास के कमांडो सार्वजनिक रूप से रैलियां आयोजित कर रहे थे। बिना आश्रय और बुनियादी सुविधाओं के रह रहे तबाह गाजा के लोग इन बंधक रिहाई आयोजनों में हिस्सा ले रहे थे। कुछ मौकों पर वे महिला बंधकों को घेरकर चिल्ला रहे थे। ये दृश्य हमास को हराने में इजरायल की सैन्य और रणनीतिक विफलता की कठोर सच्चाई बता रहे थे।
बेंजामिन नेतन्याहू जैसे आक्रामक इजरायली नेता के लिए ऐसे दृश्य असहज थे। इसलिए उन्होंने समझौते की शर्तों को पुनर्गठित करने की मांग की। इस समय अधिकांश इजरायली राजनेता इस वास्तविकता को स्वीकार करना नहीं चाहते कि हमास अब भी राजनीतिक सौदेबाजी करने में सक्षम है। इसलिए इजरायली सेना और राजनेता एक धीमा युद्ध जारी रख सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि यह युद्ध कम हिंसक या विनाशकारी होगा, बल्कि ऐसा युद्ध वर्षों तक चलता रह सकता है। असल में हमास वही कर रहा है, जो उसे सबसे अच्छे से आता है। यानी खुद को पीडि़त दर्शाना, हमले की योजना बनाना और फिर उसका औचित्य ढूंढना। हमास की उग्र विचारधारा और हिंसा नेतन्याहू जैसे विरोधी के कारण ही फलती-फूलती है। हमास अपनी कार्रवाइयों, राजनीतिक विकल्पों या हिंसक तरीकों की जिम्मेदारी नहीं लेता, सारा ठीकरा नेतन्याहू पर फोड़ देता है। युद्धविराम की विफलता के लिए नेतन्याहू ही जिम्मेदार नहीं हैं। हमास की कट्टरपंथी और चरमपंथी रणनीतियों की भी इसमें अहम भूमिका हैं। हमास की सोच कुछ उस व्यक्ति की तरह है, जो कहता है ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी।’ यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ब्रिंकमैनशिप का क्लासिक मामला है, जिसमें एक पक्ष अत्यधिक दुस्साहसी होकर आत्मसंयम और सुधार की क्षमता खो देता है। गाजा के लोग भले ही पीडि़त हों, लेकिन हमास का दावा है और आगे भी करेगा कि उसने इजरायल के खिलाफ जीत हासिल कर ली है। उसने इजरायल पर बड़ा हमला किया, बंधक बनाए, फिलिस्तीनी मुद्दे को ‘अंतरराष्ट्रीय’ बना दिया और इजरायल को एक लंबे युद्ध में फंसा दिया। मध्यस्थ इस बात पर बंटे हुए हैं कि समझौता किसने तोड़ा? अरब मध्यस्थों के अनुसार, इसका दोषी इजरायल है, जबकि अमरीका के अनुसार इसका जिम्मेदार हमास है। दोनों पक्षों के मध्यस्थ पक्षपाती हैं, इसलिए वे अधिक भरोसेमंद नहीं हंै। इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को मध्यस्थता से अधिक आत्मविश्लेषण की आवश्यकता है।
असली समस्या यह है कि इजरायली नेता और हमास लड़ाके अब भी इस युद्ध को‘जीतने’की अपनी कल्पनाओं में जी रहे हैं और इसके लिए वे जितना संभव हो उतनी मूर्खताएं करेंगे। 1950 के दशक के प्रसिद्ध इजरायली राजनयिक अब्बा एबन ने कहा था, ‘मनुष्य (या राष्ट्र) आमतौर पर बुद्धिमानी से कार्य तब करते हैं जब वे सभी अन्य विकल्प खो चुके होते हैं।’ इजरायली सेना की गाजा में बमबारी और जमीनी अभियानों की गति और तीव्रता को देखते हुए, वहां जल्द ही स्थिति गंभीर होने वाली है। हमास लड़ाकों के पास छिपने के लिए सुरंगें हैं। दुनिया इस जंग की दर्शक बनी रहेगी। उन नेताओं की मानसिकता कितनी संकीर्ण है जो अपने लोगों के नाम पर लडऩे का दावा करते हैं, लेकिन उनके पास कोई ठोस समाधान नहीं है।
Hindi News / Opinion / युद्ध जीतने की सनक भारी पड़ रही निर्दोष नागरिकों पर