महाकुंभ का पर्यावरण सम्मत आयोजन भविष्य के लिए नजीर
डॉ. विवेक एस. अग्रवाल, पर्यावरण विशेषज्ञ


महाकुंभ 2025 हर मायने में बेमिसाल रहा। संख्या, सुगमता और भव्यता के मध्य महाकुंभ में सर्वाधिक प्रमुखता पर्यावरण सम्मत आयोजन को अंजाम देने की रही। पहल ऐसी थी कि संपूर्ण विश्व उसकी चर्चा और भविष्य में अनुकरण हेतु कार्ययोजना बनाने में लग गया है। गौरतलब है कि संगम में डुबकी लगाने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं ने एकमत रूप से दुनिया के इस विशालतम आयोजन के दौरान हुई सफाई व्यवस्था की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वैश्विक रूप से विभिन्न आयोजनों और भारत में विशेषतौर पर धार्मिक यात्राओं व अवसरों पर भोजन एवं पेय सामग्री वितरित करने की परंपरा रही है। उसके परिणामस्वरूप, आयोजन के बाद लंबे अरसे तक डिस्पोजेबल सामग्री के अवशेष रह जाते हैं। इस बार, निर्धारित नीति के माध्यम से सम्पूर्ण प्रयागराज क्षेत्र में खाद्य एवं पेय पदार्थ वितरण पर रोक लगाई गई थी ताकि ढंके हुए वातावरण में वितरित किए जाने वाले पदार्थों की गुणवत्ता को कायम करते हुए इन्हें परोसा जाए एवं वहां के कचरे का सही निस्तारण हो सके। इस बाबत जिलाधिकारी अथवा मेला प्राधिकारी की अनुमति को आवश्यक किया गया था। यदि इस नीति पर अमल किया जाए तो खाद्य सुरक्षा एवं कचरा प्रबंधन दोनों के तय मानकानुसार कार्य अंजाम दिया जा सकता है।
एक अन्य प्रभावी नवाचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सम्पूर्ण राष्ट्र में छेड़ा गया अभियान ‘एक थैला, एक थाली’ रहा जिसके माध्यम से कुछ राज्यों के अतिरिक्त कपड़े के थैले एवं स्टील की थाली इक_े किए गए। साथ ही अभियान के दौरान यह आह्वान किया गया कि प्रत्येक तीर्थयात्री अपने साथ एक कपड़े का थैला और एक स्टील की थाली अवश्य लाएं, ताकि एकबारगी उपयोग होने वाले प्लास्टिक को प्रभावी तौर पर नकारा जा सके। थैले के माध्यम से जहां यात्री ने अपने सामान और खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखा, वही थाली को भोजन आदि के लिए उपयोग किया गया ताकि डिस्पोजेबल संसाधनों से भी निजात मिला। इसी क्रम में विभिन्न अन्नक्षेत्र, भंडारों, अखाड़ों, आश्रमों आदि को भी स्टील की थाली और गिलास सुलभ करवाए गए थे।
आमतौर पर कचरा उत्पादन का एक प्रमुख कारक पानी की बोतल होती हैं। स्वच्छ पेयजल के अभाव एवं उपलब्ध जल की गुणवत्ता के प्रति अविश्वास के कारण बोतलबंद पानी पर निर्भरता बढ़ती है। इस महाआयोजन में प्रचुर मात्र एवं भव्यरूप में चमकीले रंगों और बड़ी लिखावट में वाटर स्टेशन की स्थापना से बोतलबंद पानी पर निर्भरता बहुत हद तक रोकी जा सकी। आयोजनों में सुस्पष्ट एवं प्रमुखता से सुविधाओं की स्थापना उनके उपयोग को कई गुना बढ़ा देती है।
महाकुंभ के इस आयोजन में किए गए नवाचारों में एक महत्त्वपूर्ण कदम नदी के घाट, स्नान घाटों एवं संगम तट पर प्रचुर मात्रा में महिला एवं पुरुषों के कपड़े बदलने हेतु कक्षों की स्थापना भी रहा। ये समस्त कपड़े बदलने वाले कक्ष रीसाइकल्ड यानी पुन: चक्रित प्लास्टिक की शीट को उपयोग करके बनाए गए और उसे बहुत स्पष्टता से प्रदर्शित भी किया गया। इसी के साथ इन कक्षों पर बहुत ही सरल भाषा में कचरा प्रबंधन के मूल नियमों यथा रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकल को भी परिभाषित करने के साथ-साथ उसकी संपूर्ण प्रक्रिया को चित्रित भी किया गया ताकि आमजन उसे पढ़ और देख कर अंगीकार कर सके। निश्चित रूप से इस प्रयास के दूरगामी परिणाम होंगे। एक अन्य उल्लेखनीय तथ्य असंख्य कचरा पात्रों पर हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं का उपयोग करते हुए संदेश लिखे गए ताकि भाषा की सीमा में न रहते हुए इन्हें पढ़ा जा सके। इसी प्रकार के अनेकानेक नवाचारों की बदौलत प्रचलित अनुमान के विपरीत मात्र 10 प्रतिशत ही कचरा पैदा हुआ। अन्यथा, उत्पादित कचरे से पर्यावरण पर दूरगामी विषम परिणाम होते, जिनकी जड़ में ना सिर्फ प्रयागराज निवासी अपितु बहुत बड़ी आबादी आ जाती। महाकुंभ 2025 को यदि पूर्णतया पर्यावरण सम्मत कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
Hindi News / Opinion / महाकुंभ का पर्यावरण सम्मत आयोजन भविष्य के लिए नजीर