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संपादकीय : तेजाब हमलों के दंश पर कड़े कदमों की दरकार

तेजाब हमले के मामले में दिल्ली की एक अदालत की टिप्पणियां आंखें खोलने वाली हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा हमला पीडि़तों को जिंदगीभर के लिए जख्मी कर सकता है। यह शरीर ही नहीं, मन पर भी गहरे निशान छोड़ जाता है। अदालत ने मामले के दोषी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा […]

जयपुरMar 09, 2025 / 10:41 pm

Sanjeev Mathur

तेजाब हमले के मामले में दिल्ली की एक अदालत की टिप्पणियां आंखें खोलने वाली हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा हमला पीडि़तों को जिंदगीभर के लिए जख्मी कर सकता है। यह शरीर ही नहीं, मन पर भी गहरे निशान छोड़ जाता है। अदालत ने मामले के दोषी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए तीन पीडि़तों (दो लड़कियों और उनके पिता) को 20 लाख रुपए के मुआवजे का आदेश दिया है। हालांकि सच तो यह है कि मुआवजा उस नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता, जो एसिड हमले के पीडि़त शारीरिक और मानसिक रूप से झेलते हैं। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में भी एसिड हमले को ‘हत्या से भी बदतर’ बताया था।
एसिड हमले के मामले दुनियाभर में चिंता का विषय हैं। ब्रिटेन जैसे विकसित देश में ऐसे मामले सबसे ज्यादा होते हैं। वहां 2018 में 500 से ज्यादा मामले सामने आए थे। ब्रिटेन में गैंगवार में एसिड का इस्तेमाल हथियार के तौर पर किया जाता है। ब्रिटेन के बाद दूसरा नंबर भारत का है। यहां हर साल एसिड हमले के औसतन 100 से ज्यादा मामले दर्ज किए जाते हैं। एनसीआरबी के मुताबिक हमारे यहां 2017 में 148, 2018 में 131, 2019 में 150, 2020 में 105 और 2021 में 102 मामले सामने आए थे। जाहिर है, एसिड हमले पर अंकुश के लिए अब तक उठाए कदम ज्यादा कारगर नहीं रहे हैं।
भारत में पहले एसिड हमले को अलग अपराध नहीं माना जाता था। यह आइपीसी की धारा 326 (घातक हथियार या साधन से गंभीर चोट पहुंचाना) के तहत आने वाले अपराधों में से एक था। इसमें संशोधन कर 2013 में अलग धाराएं (326-ए और बी) बनाई गईं। इनमें 10 साल से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है। इस सख्ती का एसिड हमला करने वालों पर ज्यादा असर नहीं हुआ। चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में इन हमलों का दंश महिलाएं ज्यादा झेल रही हैं। महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाने वाले आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ पुरुष कभी सबक सिखाने, कभी बदला लेने तो कभी अपनी कुंठाओं को बाहर निकालने के लिए एसिड को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
एक और चुनौती एसिड की खुली बिक्री रोकना भी है। एसिड खरीदना सब्जियां खरीदने की तरह आसान होने लगा है। वर्ष 2013 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एसिड की बिक्री के नियमन के लिए राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किए थे। इनके मुताबिक विक्रेताके लिए एसिड की बिक्री का ब्यौरा (क्रेता की पहचान, पता, खरीदने का कारण) रखना अनिवार्य है। इनकी पालना में ढिलाई के निदान के साथ कानूनी प्रावधान और सख्त करना जरूरी है।

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