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नो हॉर्न प्लीज…ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण आवश्यक

— डॉ. गोविन्द पारीक
(सेवानिवृत्त जनसंपर्क अधिकारी )

जयपुरApr 12, 2025 / 11:58 am

विकास माथुर

सड़कों पर अनावश्यक हॉर्न बजाना केवल असहजता ही नहीं बल्कि एक गंभीर समस्या बन चुका है। यह न केवल ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देता है बल्कि लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। दुनिया के कई देशों में अनावश्यक हॉर्न बजाना कानूनी अपराध है और इसके लिए जुर्माने का प्रावधान है।
हॉर्न से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण केवल कानों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 65 डेसीबल से अधिक की ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण माना जाता है और 80 डेसीबल या इससे अधिक क्षमता की आवाज हमारे लिए शारीरिक कष्ट का कारण बन सकती है। प्रेशर हॉर्न से उत्पन्न 120 डेसीबल से ऊपर का शोर अत्यधिक दर्दनाक हो सकता है।
लगातार शोरगुल से तनाव, झुंझलाहट, अवसाद, उच्च रक्तचाप और सुनने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। साथ ही यह अनिद्रा और मानसिक समस्याओं को भी जन्म दे सकता है। गंभीर ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति बहरापन, याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों की चपेट में भी आ सकता है। अनावश्यक बजता हॉर्न न केवल ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है, बल्कि सड़क दुर्घटनाओं में भी इजाफा करता है। अचानक तेज आवाज से चालकों और पैदल यात्रियों का ध्यान भटक सकता है, जिससे दुर्घटनाएं हो सकती हैं। वर्तमान में, स्कूलों, अस्पतालों, धार्मिक स्थलों और शांतिपूर्ण क्षेत्रों में हॉर्न बजाने पर प्रतिबंध है, लेकिन इन नियमों का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता। विशेष रूप से प्रेशर हॉर्न और मॉडिफाइड हॉर्न की समस्या विकराल होती जा रही है, जिससे कान संबंधी विकार और मनोवैज्ञानिक समस्याएं बढ़ रही हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा हाल ही घोषित एक अनूठी पहल के तहत वाहनों के हॉर्न की कर्कश ध्वनि को भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि में बदला जाएगा।
वाहनों के हॉर्न में तबला, ताल, वायलिन, बिगुल और बांसुरी जैसे मधुर ध्वनि वाले वाद्य यंत्रों की ध्वनि सुनाई देने की उम्मीद है। यह एक सकारात्मक प्रयास है, जो आने वाले समय में सड़क यातायात के माहौल को रुचिकर बना सकता है। नागरिकों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे स्वयं और दूसरों को जागरूक करें ताकि एक शांत और स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके। शिक्षण संस्थानों, स्कूलों और कॉलेजों में इस विषय पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। ध्वनि प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर प्रयास करने होंगे। केवल जुर्माना बढ़ाने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि लोगों में जागरूकता लाने और वैकल्पिक समाधानों को अपनाने से ही एक शांत और सुखद वातावरण बनाया जा सकता है।

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