राजस्थान के लगभग सभी शहरों में एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडेक्स) मापने की व्यवस्था है। चौराहों पर प्रदर्शित भी हो रहा है। कई बार एक्यूआइ खतरनाक स्तर को भी पार कर जाता है, लेकिन इसे लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाता। एक्यूआइ खराब होने के कारणों की पड़ताल तक नहीं की जाती। फिर समाधान की राह भला कैसे निकलेगी? शासन और प्रशासन भले शहरी आबोहवा को लेकर गंभीर ना हो, आमजन इसको लेकर काफी संवेदनशील है। यही वजह है कि बच्चों की पढ़ाई से लेकर सैर-सपाटे के लिए बेहतरीन एक्यूआइ वाली जगह तलाशी जा रही है।
पर्यटकों के लिए भी ग्रामीण पर्यटन के साथ ग्रीन एरिया वाले पर्यटन स्थल प्रमुख डेस्टिनेशन बन रहे हैं। अभिभावकों की बदलती प्राथमिकता के चलते कई स्कूल-कॉलेजों की ओर से नए कैम्पस शहरों के दमघोंटू प्रदूषण से दूर बनाए जा रहे हैं। कई शैक्षणिक संस्थाओं ने तो अपनी प्रचार सामग्री में अब एक्यूआइ को भी शामिल करना शुरू कर दिया है।
इससे बड़ी चिंता की बात क्या होगी कि देश के कई शहरों की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के चलते स्कूलों में अवकाश तक घोषित करना पड़ता है। इस कारण कई कॉलेजों की सीटें तक खाली रह जाती हैं। इससे सबक लेकर देश के कई बोर्ड की ओर से आगामी सत्र से निरीक्षण के बिंदुओं में एक्यूआइ को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। शुद्ध हवा-पानी नागरिकों का अधिकार है, लेकिन सरकारें इसे मुहैया करवाने में विफल साबित होती नजर आ रही हैं। चुनाव से पहले आमजन को वायु गुणवत्ता का मुद्दा उठाना चाहिए ताकि राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में इसे शामिल किया जाए और सरकारें भी इस पर सख्त फैसले लें। हवा में घुलते जहर की रोकथाम के प्रयास सरकार व समाज सबको ही करने होंगे।
आशीष जोशी: ashish.joshi@epatrika.com