संपादकीय : हमारी सांस्कृतिक विरासत समृद्धि के द्वार खोलने वाली
प्रयागराज में सम्पन्न महाकुंभ से देश की इकोनॉमी को जिस तरह से बूस्ट मिला है वह इस तथ्य को और पुष्ट करने वाला है। महाकुंभ में पहुंचे 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं की वजह से इकोनॉमी को करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ है।


सांस्कृतिक विविधताओं और तीज-त्योहारों वाले देश भारत में विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन न केवल हमारी पुरातन परम्पराओं को सहेजते हैं बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी समृद्धिदायक होते हैं। प्रयागराज में सम्पन्न महाकुंभ से देश की इकोनॉमी को जिस तरह से बूस्ट मिला है वह इस तथ्य को और पुष्ट करने वाला है। महाकुंभ में पहुंचे 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं की वजह से इकोनॉमी को करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। न केवल प्रयागराज बल्कि यूपी में आसपास के दूसरे तीर्थस्थलों पर भी इस दौरान श्रद्धालुओं की जमकर आवक हुई है। ऐसे में इन स्थानों पर भी कारोबारी समृद्धि के साथ-साथ सरकारी राजस्व भी निश्चित ही बढ़ा है।
हमारे यहां पुरातन काल से होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस सहित विभिन्न पर्व-त्योहारों को धूमधाम से मनाए जाने की परम्परा रही है। देश के कई हिस्सों में आयोजित होने वाले मेले और उत्सव तो वहां की पहचान बन चुके हैं। प्रयागराज महाकुंभ मेंश्रद्धालुओं के आवागमन, भोजन, आवास और अन्य जरूरतों से जुड़े बंदोबस्त सचमुच बड़ी चुनौती थी। होटल व रेस्टोरेेंट से लेकर रेल, सडक़ व वायु परिवहन और संगम पर नौकायन जैसी गतिविधियों की वजह से धन का लेनदेन खूब हुआ। यूपी के अन्य प्रमुख पर्यटन स्थलों- वाराणसी, अयोध्या, नेमिषारण्य और चित्रकूट तक भी बड़ी संख्या में महाकुंभ में आने वाले लोग पहुंचे जिससे वहां की अर्थव्यवस्था में भी उछाल आया। एसबीआइ की इकोनॉमिक रिसर्च रिपोर्ट से यह भी तथ्य सामने आया है कि व्यवसाय और खर्च के लिए इस दौरान लोगों ने बैंकों से खूब पैसा निकाला जो वस्तु और सेवाओं की एवज में आम आदमी तक पहुंचा। महाकुंभ के दौरान हुए कुछ हादसे ऐसे आयोजन मेें सतर्कता की सीख देने वाले जरूर रहे। इसके बावजूद यह आयोजन निश्चित ही इतिहास के पन्नों में जुड़ गया है। बाजार में धन का प्रवाह बढ़ाने में ऐसे आयोजन कारगर भूमिका निभाते हैं। जरूरत इस बात की है कि आयोजन में खर्च करने को तैयार व्यक्ति को सुविधाएं पर्याप्त मिलें।
अर्थशास्त्रियों के नजरिए से देखा जाए तो उत्सवों और त्योहारों से न केवल बाजार गतिशील होता है बल्कि ये आयोजन लोगों का जीवन स्तर सुधारने वाले भी होते हैं। जाहिर है कि प्रत्येक कारेाबारी गतिविधि में पहुंचने वाला धन पुन: निवेश का जरिया भी बनता है। हमारे उद्योग-धंधों को रफ्तार भी ऐसे आयोजनों से बाजार में पहुंचे धन से मिलती है। ऐसे में परम्पराओं से जुड़े आयोजनों में आर्थिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
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