दरअसल, सार्वजनिक मंचों से जब हमारे नेता बच्चों को देश के भावी कर्णधार बताते हैं तो अच्छा लगता है। लेकिन इन्हीं कर्णधारों को सुविधाओं को लेकर जूझना पड़े तो जिम्मेदार उसकी परवाह तक नहीं करते। यह सोचना ही होगा कि स्वच्छ पानी ही नहीं मिले तो बच्चों की सेहत पर कैसा असर पड़ताहोगा? शौचालय तक साफ नहीं हों तो संक्रमण का खतरा लगातार बना रहता है। सरकार को स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास करना चाहिए। खासतौर पर पेयजल और शौचालयों का बंदोबस्त प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। संस्था प्रधानों को भी चाहिए कि वे इन सुविधाओं के लिए स्थानीय स्तर पर भी जनसहयोग जुटाने का काम करें। भामाशाहों की मदद से कई सरकारी स्कूलों का कायाकल्प हुआ है इसमें दो राय नहीं। लेकिन भामाशाहों के बनाए स्कूल भवन भी जब देखरेख के अभाव में जीर्ण-शीर्ण होने लगें तो फिर दोष किसको दें? सरकारी स्कूल सुविधायुक्त होंगे तो नामांकन स्वत: ही बढऩे लगेगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
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