पत्रकार का कार्य लोकतंत्र की नींव मजबूत करना भी है
बिजनेस स्टैंडर्ड के जर्नलिज्म एक्सीलेंस अवॉर्ड समारोह में पूर्व सीजेआइ डी.वाई चंद्रचूड़ का संबोधन


एक पत्रकार का कार्य केवल जानकारी प्रदान करना नहीं होता, लोकतंत्र की नींव को मजबूत करना भी होता है। आज के समय में अटेंशन (ध्यान) एक नई बौद्धिक संपत्ति बन गई है। पत्रकार का सत्य को उजागर करने और लोगों का अटेंशन बनाए रखने का प्रयास और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है, खासकर जब सूचना उपभोग का परिदृश्य बदल चुका है।
बिना पत्रकारों के समाज और लोग एक निम्नतर स्थिति में रहते हैं, जहां उनकी जागरूकता और बौद्धिकता सीमित होती है। हालांकि, यह समाचार मीडिया के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है और पत्रकारिता की क्षमता (सच्चाई को ध्यान से संतुलित करने, नैतिकता को तात्कालिकता से और ईमानदारी को व्यापार से जोडऩे की) ही लोकतांत्रिक संवाद के भविष्य को निर्धारित करेगी। पत्रकार केवल तथ्यों को एकत्रित करने और उन्हें कच्चे रूप में प्रकाशित करने का कार्य नहीं करते। वे तथ्यों और व्यक्तिपरक धारणाओं के बीच महत्त्वपूर्ण कडिय़ां जोड़ते हैं। वे ऐतिहासिक और आर्थिक दृष्टिकोण से तथ्यों की व्याख्या करते हैं। यह एक अहम कार्य है क्योंकि कच्चे तथ्यों को पत्रकारिता की व्याख्या के साथ मिलाना सत्य को उजागर करने का प्रयास है। हमारे सत्य की गुणवत्ता ही हमारे लोकतंत्र की सेहत को परिभाषित करती है।
लोकतंत्र यह मानता है कि मतभेदों के बावजूद, मौलिक वास्तविकता, एक तथ्यों का समूह है, जो सार्वजनिक विमर्श को आकार देता है। पत्रकारिता लंबे समय से इस वास्तविकता की प्रहरी रही है, जो सत्य को बनाए रखने का कार्य करती है, जबकि डिजिटल युग में अटेंशन सबसे वांछनीय मुद्रा बन गया है। मीडिया उपभोग के विकास ने पत्रकारिता पर दबाव डाला है कि वह सनसनीखेज, क्लिकबेट और वायरल गलत जानकारी से भरे ईकोसिस्टम में अटेंशन पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करे। सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स द्वारा व्यक्तिगत डेटा और व्यक्तिगत ध्यान का खनन किया जाता है और यह ‘अटेंशन माइनिंग’ पूरे ऑनलाइन पारिस्थितिकी तंत्र को जीवित रखता है। जैसे-जैसे यह ध्यान दुर्लभ होता जा रहा है, खासकर एआइ के बढ़ते प्रभाव के साथ, अटेंशन अब 21वीं सदी में एक बौद्धिक संपत्ति के रूप में उभर चुका है। पत्रकारिता के लिए इसका मतलब है ध्यान को आकर्षित करने और सत्य के प्रति वफादारी बनाए रखने के नाजुक कार्य को नेविगेट करना। यदि मीडिया ध्यान बनाए रखने में विफल रहता है, तो सत्य के अप्रासंगिक होने का खतरा है और यदि मीडिया ध्यान प्राप्त करने के लिए सत्य को मोड़ देता है, तो यह लोकतंत्र की उस नींव को कमजोर कर देता है, जिस पर वह खड़ा है और अस्तित्व में है। सत्य ही वह अर्थव्यवस्था है, जिसमें लोकतांत्रिक संवाद होता है। वे संस्थान जिन्होंने विश्वसनीयता बनाए रखी है, उन्होंने लंबी अवधि के विश्वास को प्राथमिकता दी है। धन, ताकत और राजनीति से उत्पन्न भारी दबाव के बावजूद शॉर्ट-टर्म लाभ से बचने की कोशिश की। पत्रकारिता केवल बाजार की ताकतों पर प्रतिक्रिया नहीं करती है। यह उन्हें आकार देती है लेकिन यदि यह भ्रष्ट हो जाती है, तो इसका परिणाम उस लोकतंत्र के विघटन के रूप में सामने आता है, जिसमें यह कार्य करती है।
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