‘घरों पर बुलडोजर से गिराना संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसा’
जस्टिस भुइयां ने कहा कि मेरे अनुसार किसी संपत्ति को बुलडोजर से गिराना संविधान पर बुलडोजर चलाने जैसा है। यह कानून के शासन की अवधारणा को ही नकारता है और यदि इसे नहीं रोका गया, तो यह हमारे न्यायिक तंत्र की बुनियाद को नष्ट कर देगा।
ऐसे निणयों से लोगों के जीवन पर प्रभाव
उन्होंने इस तरह की कार्रवाइयों के प्रभाव पर जोर देते हुए कहा कि मान लीजिए कि उस घर में कोई आरोपी या दोषी रहता था, लेकिन उसके साथ उसकी मां, बहन, पत्नी और बच्चे भी रहते थे। उनकी क्या गलती है? यदि आप वह घर गिरा देंगे, तो वे कहां जाएंगे? यह उनके सिर से छत छीन लेने जैसा है। यहां तक कि आरोपी या दोषी के साथ भी ऐसा नहीं होना चाहिए। केवल किसी के अपराधी होने के संदेह मात्र से उसका घर गिरा देना उचित नहीं हो सकता। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या केवल किसी व्यक्ति के अपराधी या दोषी होने से उसके पूरे परिवार को सजा देना सही है?
न्यायिक प्रणाली में सुधार की जरूरत
जस्टिस भुइयां पुणे के भारती विद्यापीठ न्यू लॉ कॉलेज में आयोजित 13वें जस्टिस पी.एन. भगवती इंटरनेशनल मूट कोर्ट प्रतियोगिता में बोल रहे थे। उन्होंने न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि यह दावा करना पर्याप्त नहीं है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय दुनिया की सबसे शक्तिशाली अदालत है। हमें यह भी आत्मविश्लेषण करने की जरूरत है कि क्या हमने कहीं कोई गलती की है? अगर हम ऐसा करेंगे, तभी हम सुधार कर सकते हैं। और मैं दृढ़ता से मानता हूं कि भारतीय न्यायपालिका में सुधार की बहुत गुंजाइश है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर पुनर्विचार की जरूरत
उन्होंने कहा कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों की भी पुनर्विचार की जरूरत हो सकती है। एक मौजूदा सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में, मैं यह कहने में कोई संकोच नहीं करूंगा कि सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च इसलिए है क्योंकि यह अंतिम अदालत है। लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट से ऊपर कोई और अदालत होती, जैसे पहले की प्रिवी काउंसिल, तो संभवतः सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों पर पुनर्विचार करना पड़ता।