द इकोनॉमिक टाइम्स के 10 मार्च 2025 के लेख में आज़ाद ने अपने अनुभव को साझा किया, “पहली बार सांसद के रूप में अनुभव पर, बाबासाहेब का जिक्र करते हुए कहा कि आंबेडकर ने कहा था कि राजनीतिक शक्ति समस्याओं के समाधान, सामाजिक और आर्थिक बदलावों को लागू करने और समाज को बदलने की मास्टर चाबी है। संसद, जो कानून बनाती है और संसाधनों के वितरण का निर्णय लेती है, वह राजनीतिक शक्ति की मास्टर चाबी है। मैं इसे अपने लोगों, दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए उपयोग कर रहा हूँ।”
कांशी रामजी का मिशन पूरा नहीं कर पाई मायावती
मायावती के नेतृत्व की आलोचना करते हुए कहा कि, “मायावती ने बीएसपी को एक विशाल वृक्ष बनाया, चार बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई। लेकिन कांशी रामजी का मिशन पूरा नहीं हुआ। दलित अब भी अपनी जंग लड़ रहे हैं।” विचारधारा के स्तर पर, आज़ाद एएसपी को सामाजिक न्याय और जाति-आधारित मुद्दों का मंच बताते हैं। वे कहते हैं, “हमारा यह वैचारिक संघर्ष है। हमें अपनी शक्ति से लड़ना होगा क्योंकि सरकार और विपक्ष वैचारिक संघर्षों में रुचि नहीं रखते।” वे जाति गणना की मांग करते हैं, कहते हैं, “जाति गणना पुरानी मांग है। लेकिन 2011 में यूपीए ने सर्वेक्षण नतीजे रोके, तो मांग की विश्वसनीयता क्या है?”
UP में 21.1% दलित आबादी
उत्तर प्रदेश में, जहां 21.1% दलित आबादी है, दलित वोटों का ध्रुवीकरण बढ़ा है। जाटव बीएसपी से दूर हो रहे हैं, जबकि गैर-जाटव समुदाय समाजवादी पार्टी (एसपी) और बीजेपी की ओर आकर्षित हुए। एसपी ने “पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक” रणनीति से 2024 में 34% वोट शेयर हासिल किया, जबकि बीएसपी का पतन एक वैक्यूम पैदा कर रहा है। बीजेपी ने गैर-जाटव दलितों को लक्षित करते हुए आरएसएस के सहारे जमीनी काम और कल्याण योजनाएं चलाईं, लेकिन हाथरस जैसे मामलों ने नुकसान पहुंचाया, जिससे 2019 के 62 से 2024 में 36 सीटें रहीं। इस तरह, दलित राजनीति में बदलाव और नए नेतृत्व की खोज जारी है।