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प्राचीन हनुमान की मूर्ति में अंकित है शिवलिंग, कवर्धा में ऐसे कई दुर्लभ प्रतिमाएं स्थापित, जानें..

Hanuman Jayanti 2025: कवर्धा जिले में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।

कवर्धाApr 10, 2025 / 12:04 pm

Shradha Jaiswal

प्राचीन हनुमान की मूर्ति में अंकित है शिवलिंग, कवर्धा में ऐसे कई दुर्लभ प्रतिमाएं स्थापित, जानें..
Hanuman Jayanti 2025: छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। हनुमान जयंती पर नगर के सभी हनुमान मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। हनुमान जन्मोत्सव पर श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर में सुबह से ही विविध आयोजन के साथ ही भक्तों का सैलाब उमड़ता है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यही वह पावन दिन था, जब माता अंजनी और वानरराज राजा केसरी के घर बजरंगबली का जन्म हुआ था। प्रत्येक वर्ष इस दिन धूमधाम के साथ हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
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Hanuman Jayanti 2025: नगर में स्थापित श्री खेड़ापति हनुमान

जिले में चिरंजीवी श्री हनुमान लला की अनेक अद्भुत और विभिन्न रूपों में मनभावन मूर्तियां देखने को मिलती है। हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी रूद्रअवतार हैं। इसीलिए शिव मन्दिर व श्रीराम मन्दिर में हनुमान जी की मूर्ति प्राय: दृष्टव्य होती है। जिले में 11 वीं सदी से 18 वीं सदी तक की प्राचीन सिद्ध हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित हैं। जिला पुरातत्व समिति के सदस्य आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि कवर्धा एक ऐसा क्षेत्र है, जहां हनुमान जी की अनेक कल्याणकारी प्रतिमाएं विराजित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रही है।
प्राचीन हनुमान की मूर्ति में अंकित है शिवलिंग, कवर्धा में ऐसे कई दुर्लभ प्रतिमाएं स्थापित, जानें..
कवर्धा-पंडरिया अंचल में वैसे तो हर ग्राम का पवनसुत अपने आप में सिद्ध है। फिर भी कामठी, पचराही, पंडरिया जमात मंदिर, डोंगरिया मेला स्थल, पुतकी-चारभाठा, बोड़ला के राम मंदिर, कवर्धा पुराना मंडी, मठपारा कवर्धा का पंचमुखी हनुमान, बड़े मंदिर का बड़ा हनुमान जी भक्तों पर अपनी कृपा बरसा रहे हैं।

937 साल पुरानी हनुमान जी की मूर्तियां

सर्वप्रथम हम 11 वीं सदी की सिद्धपीठ भोरमदेव में मुख्य मन्दिर के दक्षिण में स्थापित 937 वर्ष प्राचीन हनुमान जी के विषय में ज्ञानवर्द्धन करते हैं। इस मूर्ति की विशेषता है कि इनके दाहिनी हथेली में शिवलिंग अंकित है, जो प्राय:दुर्लभ है। हनुमान जी पैरों के नीचे कालनेमि को दबाए हुए हैं। यह उस समय का दृश्य है, जब लंका युद्ध के समय शिवलिंग पूजन के लिए हनुमान जी को शिवलिंग लाने के लिए श्रीराम कैलाश भेजते हैं।
जिसे लेकर हनुमान जी आते हैं। जब तक विलम्ब होने के कारण श्रीराम स्वयं रामेश्वर शिवलिंग बनाकर पूजन करते हैं। हनुमान जी द्वारा लाए गए शिवलिंग को समीप ही स्थापित कर यह घोषणा करते हैं कि इस शिवलिंग के दर्शन बिना श्री रामेश्वर दर्शन अपूर्ण होगा। इस मूर्ति को संकटमोचन और मनोकामना हनुमान जी मानते हैं। क्योंकि औघड़दानी शिवलिंग उनके हाथों में और संकटमोचन हनुमान जी स्वयं अर्थात रूद्र और रुद्रावतार दोनों साथ हैं। बुद्धिदाता गणेश जी इनके साथ हैं।

जानें इस मूर्तियों की विशेषताएं

देवांगन मोहल्ले में विराजित कवर्धा के सरकार श्री खेड़ापति हनुमान जी की यह प्रतिमा 11-12 वीं शताब्दी की अत्यंत मनोहारी प्रतिमा है, जिसके एक हाथ में गदा, दूसरे हाथ में जापमाला है। पैरों के नीचे कालनेमि दानव है। यह अपने किस्म की एकमात्र हनुमान प्रतिमा है, जो प्रसन्न वदन है व जाप की मुद्रा में है। इनके दिन में अनेक रूप परिवर्तित होते हैं। प्रात:काल का बाल स्वरूप चिरस्मरणीय होता है। हनुमान जी के दांये भाग में श्री विनायक गणेश जी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इस तरह यहां विद्या, बुद्धि और बल का संयुक्त कोष है, जिसमे से भक्त चाहे जितना ग्रहण कर सकता है।
यह मूर्ति संकरी नदी के तट पर कहीं दबी हुई थी। जब कवर्धा रियासत की स्थापना विधिवत हुई, तो सन् 1760 में महाराज महाबली सिंह को हनुमान जी का स्वप्न आया कि मैं शंकरी नदी के तट पर हूं। मुझे ले जाकर स्थापित करो। इस तरह कवर्धा नरेश द्वारा सम्मान पूर्वक विधि-विधान के साथ कवर्धा के अधिपति के रूप में वर्तमान स्थल पर स्थापित कराया गया। कालान्तर में श्री खेड़ापति हनुमान जी के नाम से कवर्धा में विख्यात हुआ।
जनता के सहयोग से आज भव्य व चित्ताकर्षक मन्दिर निर्मित हो चुका है। यहां हनुमान जी की अगहन शुक्ल त्रयोदशी के दिन विशेष पूजा की जाती है। इस दिन ग्रन्थि पूजन करते हैं, जिसमें पीले धागे में 13 गांठ बांधते हैं और संकट निवारण के साथ मनोकामना सिद्धि के लिए पीले धागे से युक्त डोरे धारण करते हैं। यहां हनुमान जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, शोभायात्रा निकाली जाती है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।

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