ऐसे किया ये कारनामा
आज विश्व जल दिवस के अवसर पर हम आपको जल संरक्षण की इस प्रेरणादायक कहानी से रूबरू करा रहे हैं। जल बचाने की इस पहल में शिवगंगा संगठन की भूमिका अहम रही है। इस संगठन ने न केवल जल संरक्षण में अभूतपूर्व बदलाव लाने का कार्य किया, बल्कि आदिवासियों में जागरूकता भी फैलाई। इतना ही नहीं, ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से अपनी प्राचीन परंपरा हलमा को फिर से जीवंत किया। इस जल संरक्षण अभियान का प्रभाव यह हुआ कि इन जल संरचनाओं के माध्यम से हर वर्षा काल में करीब 1510 करोड़ लीटर पानी सहेजा जा रहा है। झाबुआ शहर से लगी हाथीपावा की बंजर पहाड़ी पर हर साल हलमा परंपरा के तहत जल संरचनाओं का निर्माण किया जाता है, जिससे बारिश का पानी सीधे जमीन में उतर सके।
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शिवगंगा संगठन द्वारा 3 मार्च को हाथीपावा पहाड़ी के उत्तरी क्षेत्र में एक विशेष अभियान चलाया गया। इस दौरान ढाई घंटे के सामूहिक श्रमदान के माध्यम से पहले से बने कंटूर ट्रेंच की मरम्मत की गई और नए ट्रेंच का निर्माण किया गया। इस अभियान में कुल 11 हजार कंटूर ट्रेंच बनाए गए। दावा किया जा रहा है कि बारिश के मौसम में इन छोटी-छोटी संरचनाओं के जरिये कुल 11 करोड़ लीटर पानी सीधे जमीन में समा जाएगा। इससे निश्चित तौर पर भू-जल स्तर में सुधार होगा।
अगर गणना करें तो प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत 70 लीटर पानी की जरूरत होती है। इस हिसाब से 11 करोड़ लीटर पानी से एक दिन में करीब 15 लाख 71 हजार 428 लोगों की जरूरत पूरी की जा सकती है। यदि इसे झाबुआ नगर की 50 हजार की आबादी के लिहाज से देखा जाए, तो यह पानी 31 दिनों तक* शहर की जल आवश्यकता को पूरा कर सकता है।
पीएम मोदी ने भी सराहा झाबुआ की हलमा परंपरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2022 को मन की बात कार्यक्रम में झाबुआ की हलमा परंपरा का विशेष रूप से उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि भील जनजाति ने अपनी ऐतिहासिक परंपरा हलमा को जल संरक्षण के लिए पुनर्जीवित किया। इस परंपरा के तहत इस जनजाति के लोग पानी से जुड़ी समस्या का समाधान खोजने के लिए एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और मिलकर श्रमदान करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा था कि हलमा के कारण झाबुआ क्षेत्र में जल संकट काफी हद तक कम हुआ है और भू-जल स्तर बढ़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि इस प्रकार के कर्तव्यबोध की भावना सभी में आ जाए, तो जल संकट का समाधान निकाला जा सकता है।
क्या है हलमा परंपरा?
शिवगंगा संगठन के प्रमुख पद्मश्री महेश शर्मा ने बताया कि हलमा भील समाज की परमार्थ नर की प्रेरणा से सामूहिक रूप से कार्य करने की एक प्राचीन परंपरा है। शिवगंगा संगठन ने जिले की जल समस्या के समाधान के लिए 2009-10 में हलमा परंपरा को पुनर्जीवित कर पानी बचाने की शुरुआत की थी।
इस परंपरा का सकारात्मक प्रभाव केवल जल स्तर पर ही नहीं पड़ा, बल्कि इससे समाज में सामूहिकता, परमार्थ और स्वाभिमान जैसे मूल्यों का भी पुनर्जागरण हुआ है। आज झाबुआ के ग्रामीण जल संरक्षण के क्षेत्र में एक मिसाल कायम कर चुके हैं और हलमा परंपरा पूरे देश के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई है।