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History of Indian Medical Science : हर युग में चिकित्सा को समृद्ध करने वाले महान शोधकर्ता, पढ़िए पत्रिका की खास रिपोर्ट

Ancient Indian Medicine ” प्राचीन भारतीय ग्रंथों में स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान का समृद्ध ज्ञान संकलित है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और योगसूत्र जैसे ग्रंथ आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा और योग विज्ञान की नींव रखते हैं। महर्षि चरक, सुश्रुत और पतंजलि ने चिकित्सा और योग को एक संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में विकसित किया, जो आज भी प्रासंगिक है।

जयपुरApr 01, 2025 / 04:09 pm

Manoj Kumar

History of Indian Medical Science

History of Indian Medical Science

History of Indian Medical Science : प्राचीन भारतीय ग्रंथों में स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान का गहरा ज्ञान संहिताओं के रूप में संकलित है। इनमें चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, योगसूत्र, महाभाष्य, और अष्टांग हृदय जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं, जो आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा और योग विज्ञान का आधार हैं। महर्षि चरक और सुश्रुत ने जहाँ चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के नियम स्थापित किए, वहीं महर्षि पतंजलि ने योग और आयुर्वेद को जोड़कर एक संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली विकसित की।
श्रोत संहिता में शल्य चिकित्सा के आठ महत्वपूर्ण प्रकारों का उल्लेख मिलता है, जो आधुनिक सर्जरी की नींव माने जाते हैं। ये संहिताएँ न केवल भारतीय चिकित्सा परंपरा की धरोहर हैं, बल्कि आज भी स्वास्थ्य विज्ञान के क्षेत्र में प्रासंगिक बनी हुई हैं।

आचार्य चरक : मेटाबॉलिज्म, व कैंसर का इलाज

हल्दी (कुरक्यूमिन) के बारे में वर्णन।
आयुर्वेदिक दवाओं के कैंसर पर असर का उल्लेख किया।
चयापचय (मेटाबॉलिज्म), शरीर प्रतिरक्षा (इम्युनिटी), और पाचन से जुड़े रोगों की पहचान और इलाज के उपाय बताए।
चरक संहिता में सोना, चांदी, लोहा, पारा जैसी धातुओं के भस्म और उनके इस्तेमाल का वर्णन।
300 से अधिक पौधों के प्रकारों की पहचान की।
ऋतुओं के अनुसार आहार-विहार के बारे में बताया।

आज: वोगेल व पेलेटियर ने कक्र्यूमा लोंगा (हल्दी) पर शोध महज 200 साल पहले प्रस्तुत किया।
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आचार्य सुश्रुत : सर्जरी के जनक

इस गुप्तकालीन महान चिकित्सक ने शल्य चिकित्सा पर सुश्रुत संहिता लिखी। इसमें प्लास्टिक सर्जरी और मोतियाङ्क्षबद ऑपरेशन का वर्णन है।
विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज की औषधियां भी खोजीं।
प्लास्टिक सर्जरी (नाक की शल्य क्रिया) की। सर्जरी के उपकरण विकसित किए।
आज: पश्चिम में प्लास्टिक सर्जरी और अन्य सर्जरी की शुरुआत 1794 से बताई जाती है। कुछ शुरुआती सर्जरी का समय 1747 माना जाता है। आधुनिक सर्जरी के उपकरणों के लिए 18वीं सदी के विलियम हंटर को श्रेय दिया जाता है। इसी तरह अश्वगंधा, तुलसी, गिलोय की स्वास्थ्य संबंधी उपयोगिता महर्षि सुश्रुत ने करीब 2,600 साल पहले बता दी थी। लेकिन आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अश्वगंधा पर शोध 1960 के दशक में शुरू किया गया।

महर्षि वाग्भट्ट : डायग्नोसिस से डिटॉक्सिफिकेशन थैरेपी तक

वह गुप्त काल और बाद के समय तक सक्रिय रहे और आयुर्वेद को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने वाले अंतिम महान आचार्यों में से एक थे।
आचार्य सुश्रुत और चरक के सिद्धांतों का समन्वय कर इन्हें समझाना आसान किया। इससे आयुर्वेद ज्यादा व्यावहारिक और उपयोगी बना।
अष्टांगहृदयम् और अष्टांगसंग्रह की रचना।
चिकित्सा, रसशास्त्र, रोगों की पहचान, उपचार पद्धति, जीवनशैली, पंचकर्म चिकित्सा, जड़ी-बूटियों का प्रयोग, और शल्य चिकित्सा के सिद्धांतों का वर्णन किया।
आयुर्वेद के आठ अंग (अष्टांग आयुर्वेद) बताए। इनमें शामिल थे काय चिकित्सा (इंटर्नल मेडिसिन), शल्य तंत्र (आधुनिक सर्जरी), शलाक्य तंत्र में नेत्र, कान, नाक, गले, आंख, दांत के रोग। इन्हें आज ईएनटी, डेंटल व आई चिकित्सा कहा जाता है। अगद तंत्र (विष चिकित्सा या टॉक्सिकोलॉजी), भूत विद्या (मनोचिकित्सा), कौमार भृत्य (बाल चिकित्सा व प्रसूति-स्त्री रोग), रसायन तंत्र (कायाकल्प व दीर्घायु चिकित्सा (एंटी-एङ्क्षजग व इम्यूनोलॉजी), वाजीकरण (यौन स्वास्थ्य) भी इसमें शामिल। 
पंचकर्म चिकित्सा वैज्ञानिकता प्रस्तुत की, जिसे आज डिटॉक्सिफिकेशन थैरेपी के रूप में अपनाया जाता है।
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भगवान धन्वंतरि : आयुर्वेद के जनक

त्रेता युग में, आयुर्वेद का ज्ञान ब्रह्मा से प्राप्त कर विभिन्न ऋषियों को प्रदान किया।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का उल्लेख समुद्र मंथन से जुड़ा है।
आज: धन्वंतरि की पूजा चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत लोग करते हैं। अब आधुनिक विज्ञान भी आयुर्वेद और योग से स्वस्थ रहने और रोगों के उपचार में उपयोगिता पर अध्ययन व शोध कर रहा है।

हर काल में शोध से समृद्ध हुई चिकित्सा

बौद्ध काल

वैद्य जीवक कुमारभच्छ: सम्राट ङ्क्षबबिसार के राजवैद्य, पीलिया के उपचार और प्रसव संबंधी शल्य चिकित्सा के ज्ञाता थे।

मौर्य काल

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में शव परीक्षण से अपराधों के मामलों का निर्णय लिया जाता था।
राजा के आपातकालीन उपचार के लिए दरबार में हमेशा राजवैद्य तैनात रहते थे। यही व्यवस्था आज अतिविशिष्ट व्यक्तियों के साथ भी की जाती है।
निशुल्क चिकित्सालय होते थे। आज सरकारें निशुल्क इलाज और दवा योजनाएं चलाती हैं।
अलग-अलग रोगों के उपचार के पृथक कक्ष होते थे। आज के सुपर स्पेशियलिटी जैसा।
महिला धात्री (नर्स) और परिचारक (कम्पाउंडर) के रूप में सहयोग करती थीं। (अर्थशास्त्र)

सम्राट अशोक का काल

सम्राट अशोक ने निशुल्क चिकित्सालयों और औषधि उद्यानों की स्थापना करवाई।
बौद्ध भिक्षु चिकित्सा प्रणाली के प्रचारक बने और इसे एशिया में फैलाया।

गुप्त काल यह आयुर्वेद का स्वर्ण युग कहलाता है।

इस दौरान सुश्रुत संहिता और चरक संहिता का पुनर्लेखन किया गया।
नालंदा विश्वविद्यालय चिकित्सा शिक्षा का केंद्र बना।
तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों में आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती थी।
चिकित्सा पद्धति संगठित हुई और इसमें आयुर्वेद, सर्जरी, औषधि विज्ञान और मानसिक स्वास्थ्य को स्थान मिला।

मध्यकालीन आयुर्वेद

वाग्भट्ट और अन्य विद्वानों ने आयुर्वेद को समृद्ध किया।
भारत में यूनानी चिकित्सा का प्रभाव भी आया।

योग के जनक महर्षि पतंजलि

ध्यान, प्राणायाम, आसन, संयम, समाधि आदि का वैज्ञानिक तरीके से वर्णन किया।
आज: योग विज्ञान को मान्यता देते हुए वर्ष 2014 से संयुक्त राष्ट्र 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाता है।
एमआइटी, हार्वर्ड समेत अमरीका के कई विश्वविद्यालयों में योगसूत्रों पर शोध हो रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई मेडिकल संस्थाएं योग को मानसिक स्वास्थ्य और बीमारियों के इलाज में कारगर मान चुकी हैं।
प्राणायाम, योग के स्वास्थ्य पर प्रभाव और इम्युनिटी को लेकर पतंजलि ने सूत्र बताए। जबकि आधुनिक विज्ञान में 1970 के आसपास यह चलन में आया। ध्यान (मेडिटेशन) के मस्तिष्क पर प्रभाव उपनिषद के हवाले से बताए जाते हैं। अमरीका में इस पर रिसर्च बीसवीं सदी में हुई।

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