रामप्रसाद सैनी पचेवर (टोंक)। नगर गांव में धुलंडी के दिन अनूठा नजारा देखने को मिलता है, यहां महिलाएं और युवतियां होली खेलती नजर आती हैं। सभी पुरुष गांव के बाहर मेले का आयोजन कर पटेलाई करते हैं। पुरुष न तो रंग खेलते हैं और न ही उन्हें रंग खेल रही महिलाओं को देखने का अधिकार होता है। महिलाएं लोक गीत गाकर पुरुषों को गांव से बाहर करती है। सुबह दस बजे तक सभी पुरुष गांव से बाहर निकल जाते हैं। पुरुष अपने रिश्तदारों के साथ गांव से बाहर चामुंडा माता मंदिर परिसर में पहुंचते हैं, जहां मेला लगता है।
धुलंडी के अगले दिन गांव में महिला एवं पुरुष मिलकर सामूहिक कोड़ा मार होली खेलते हैं। इस मौके पर जगह-जगह रंगों के पानी से कड़ाव भरे जाते हैं। इसके चारों और महिलाएं कोडे़ लिए खड़ी रहती हैं। महिलाएं पुरुषों को रोकने के लिए कोडे़ से पीठ पर वार करती है।
सामाजिक सुधार पर होती चर्चा
चामुंडा माता मंदिर में पुरुष बैठकों का आयोजन करते हैं, जहां सामाजिक सुधार, जागृति आदि महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा कर कई निर्णय लिए जाते हैं। मेले में अलग-अलग समूह बनाकर ढोल मंजीरों की थाप पर भजनों की प्रस्तुतियां देते हैं, वहीं भजनों पर नृत्य करके आनंद लेते हैं।
बिना घूंघट के खेलती है होली
पूर्व सरपंच राजू सिंह ने बताया कि गांव में एक दिन महिलाओं का राज होता है। बुजुर्ग बताते हैं कि पांच सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन जागीरदार ने निर्णय लिया कि वर्ष में एक दिन महिलाओं का राज होना चाहिए, ताकि महिलाएं बिना घूंघट के होली खेलकर आनंद ले सके। इस दौरान भूलवश यदि कोई पुरुष गांव में प्रवेश हो जाए तो महिलाएं उसे रंग से भरे कड़ाव में डाल देती है। महिलाएं उस पुरुष की पिटाई भी करती है और उस व्यक्ति को गांव से बाहर निकाल देती हैं।