जाति प्रमाण पत्र नहीं, हक भी नहीं
यहां चर्चा के बाद इसी विधानसभा क्षेत्र की कुचबधिया बस्ती का जायजा लिया। 200 घरों की इस बस्ती के ज्यादातर लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं। चुनाव के पहले इनकी समस्या थी कि इनके जाति प्रमाण पत्र नहीं बनते थे। आज भी वही समस्या है। बाघ सिंह बताते हैं कि जाति प्रमाण पत्र के अभाव में बच्चों और उन्हें योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। राशन वितरण व्यवस्था में आधे अधूरे और अनियमित खाद्यान्न मिलने की बात कही। बाजार क्षेत्र में रहने वाले अभय गुप्ता अपनी दुकानदारी में व्यस्त मिले। उन्होंने कहा कि यहां काफी विकास कार्य हुए हैं और लोगों को योजनाओं का लाभ भी मिला है। अपनी दुकान के सामने बने हॉकर कार्नर को दिखाते हुए कहा कि इससे फुटपाथी व्यापारियों को काफी लाभ मिला है।
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विकलांग भी योजना के लाभ से वंचित
अमरपाटन से बाइक के जरिए मैहर विधानसभा क्षेत्र के गांव जीत नगर पहुंचा। यहां बस स्टाप की गुमटी में तीन चार लोग बैठे थे। इनमें से एक ने अपना नाम शारदा प्रजापति बताया। जब उनसे सरकारी योजनाओं के लाभ पर सवाल किया तो उन्होंने लाभ से न सिर्फ इनकार किया, बल्कि नाखुशी भी जताई। बोले, विकलांग कोटे से आता हूं। तमाम दफ्तरों में चक्कर काटे लेकिन किसी भी योजना का कोई लाभ नहीं मिला। छह माह से राशन का कूपन तक नहीं मिला। इसी गुमटी में बैठी रानी बोल उठीं, कहीं कोई काम नहीं हो रहा है। गरीबों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सब ऊपर ही ऊपर बताने और दिखाने की बात है। कोई समस्याएं नहीं सुन रहे हैं न ही उनके लिए पहल कर रहे हैं।
मूलभूत सुविधा को तरस रहे लोग
सूरज ढलने को था और तपिश कम होने लगी थी, उस समय रामपुर बाघेलान विधानसभा क्षेत्र के ग्राम सिधौली पहुंचा। हाइवे के किनारे कुछ लोग बैठे नजर आए, तो गाड़ी उधर घुमा दी। बातचीत का सिलसिला शुरू किया, तो नंदू कोल बोला, ग्रामीणों के लिए राशन, पानी और बिजली ही मुद्दा होता है। पांच साल पहले जैसे राशन मिलता था, आज भी वही हाल है। पिछले कुछ माह से राशन नहीं मिला है। राशन नहीं आया कहकर दुकानदार वापस कर देता है। यहीं अमित सिंह बोले, बिचौलिए योजनाओं को गांव में सही लोगों तक पहुंचने ही नहीं देते हैं। इसी बीच कलेक्ट्रेट से रामपुर लौट रहे चक्रधर द्विवेदी यहां पान खाने पहुंचे। यहां चल रही चर्चा को सुनने के बाद उन्होंने कहा, ‘रामपुर का खुरचन तो आपने भी खूब सुना है। लेकिन इसके कारोबार को क्या कोई पहचान मिल पाई? बात करते हैं एक जिला एक उत्पाद की। आज भी गांव के लोग सड़क किनारे कुर्सी टेबल लगाकर इसकी दुकान सजाए बैठे हैं। न तो बाजार मिला और न ही बाहर के बाजारों का कोई लिंक। इतनी फैक्ट्री यहां खुली हैं, लेकिन लोकल लोगों के लिए रोजगार नहीं है। हां, अपनी जमीन बेच दो फैक्ट्री को तो दिहाड़ी मजदूर उनके बन जाओगे।
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