सहारनपुर और मुजफ्फरनगर की सीमा पर बसा है ये गांव
हम बात कर रहे हैं सहारनपुर के गांव जड़ौदा पांडा की। इस गांव में महा भारतकालीन बाबा नारायण दास का जूड़ मंदिर है। क्षेत्रीय भाषा में इसे ‘जूड़’ मंदिर कहा जाता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि बाबा के वंश से जुड़े 12 गांव को वरदान प्राप्त है। इनमें जड़ौदा पांडा के अलावा किशनपुरा, जयपुर, शेरपुर, घिसरपड़ी, किशनपुर, चरथावल, खुशरोपुर, मोगलीपुर, चौकड़ा, घिस्सूखेड़ा और न्यामू गांव शामिल हैं। इन सभी गांव के लोग जूड़ वाले बाबा को ईश्वर के अवतार की तरह ही मानते हैं। इन सभी 12 गांव के लोग मानते हैं कि उनके गावों पर बाबा नारायण दास की ऐसी कृपा बनी हुई है कि अगर किसी ग्रामीण को कोई सांप डस ले तो सांप का जहर फीका पड़ जाता है और कोई अनहोनी नहीं होती।
700 साल से चली आ रही ( Snake ) परम्परा
जब हमने इस गांव के लोगों से विस्तार से बात की तो ग्रामीणों ने बताया कि करीब 700 साल पहले गांव जड़ौदा पांडा निवासी उग्रसेन और माता भगवती के घर बाबा नारायण दास का जन्म हुआ था। बाबा नारायण दास बचपन से ही भगवान शिव के भक्त थे। बड़े होकर उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर भोलेनाथ की तपस्या की। बाद में उन्होंने अपने हिस्से की 80 बीघा धरती भी शिव मंदिर को दान में दे दी। ऐसी मान्यता है कि महाभारत कालीन शिव मंदिर के पास साधना के दौरान वह अपने सेवक, एक घोड़े, कुत्ते के साथ धरती में समा गए थे। यही कारण है कि, मंदिर प्रांगण में ही बाबा नारायण दास की समाधि भी है।
सुनिए पूरी कहानी गांव वालो ही की जुबानी
जड़ौदा पांडा के ही रहने वाले पंडित पंकज शर्मा बताते हैं कि उन्हे ऐसी कोई घटना याद नहीं आती जब सांप के डसने से गांव में किसी की मौत हुई हो। इसी गांव के रहने वाले आदीप त्यागी बताते हैं कि बाबा नारायण दास की 12 गांव पर कृपा है। यही कारण है कि इन 12 गांव को लोगों को सांप डस भी ले तो दवाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। बतादें कि पत्रिका इस बात की गारंटी नहीं देती कि इस गांव में लोग सांप के डसने से नहीं मरते ना ही हम लोगों को यह सलाह देते हैं कि वो सांप या किसी अन्य जहरीले जानवर के काटने पर डॉक्टर के पास ना जाएं। हम यह सभी बातें स्थानीय लोगों की मान्यता के आधार पर आपको बता रहे हैं।
जहां आज मंदिर वहां हुआ करता था बांस का वन
गांव वालों के अनुसार आज जिस स्थान पर बाबा नारायण दास का मंदिर है वहां पहले कभी बांस का वन हुआ करता था। इसी वन में बाबा नारायण दास ने समाधि ली थी। इस क्षेत्र को स्थानीय भाषा में जूड़ कहा जाता है। यही कारण है कि इस मंदिर का नाम भी जूड़ पड़ गया और लोग इसे जूड़ मंदिर भी कहते हैं।