scriptराजस्थान के इस जिले में घर-घर में बन रही नीम, चकुंदर और फूलों से गुलाल, 1700 से 3000 किलो पहुंचा उत्पादन…पढ़े पूरी खबर | In this district of Rajasthan, gulal is being made from neem, beetroot and flowers in every house, production reached 1700 to 3000 kg… read full news | Patrika News
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राजस्थान के इस जिले में घर-घर में बन रही नीम, चकुंदर और फूलों से गुलाल, 1700 से 3000 किलो पहुंचा उत्पादन…पढ़े पूरी खबर

राजसमंद में स्वयं सहायता समूहों की ओर से घर-घर में हर्बल गुलाल तैयार की जा रही है। इसकी खासियत यह है कि इसमें किसी भी तरह के प्राकृतिक रंगों की जगह नीम, चकुंदर, पलाश, हजारे के फूल से गुलाल तैयार हो रही है।

राजसमंदMar 03, 2025 / 11:12 am

himanshu dhawal

राजसमंद के गांव में घर में महिलाएं तैयार करती हर्बल गुलाल

हिमांशु धवल
राजसमंद.
मेवाड़ को प्रकृति ने खूब दिया है। उन्ही प्राकृतिक चीजों का उपयोग कर जिले के खमनोर और कुंभलगढ़ में हर्बल गुलाल बनाने का सफर शुरू हुआ जो अब पूरे जिले में फैल गया है। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं हर्बल गुलाल तैयार कर आत्मनिर्भर बन रही है। गुलाल के रंग उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का काम कर रहे हैं। जिले में इस बार 3000 हजार किलो हर्बल गुलाल तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिले के खमनोर व कुंभलगढ़ तहसील की महिलाओं को ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका) के माध्यम से हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया। राजीविका ग्रामीण क्षेत्र की गरीब महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के रूप में जोडकऱ उन्हें प्रोत्साहित कर रोजगार उपलब्ध कराना का कार्य होता है। इसी के तहत महिलाओं के समूह को हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके पश्चात 2022 में महिला स्वयं सहायता समूह की और हर्बल गुलाल बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ। पहली बार में समूह की ओर से तैयार हर्बल गुलाल इतनी पसंद आई की होली से पहले ही गुलाल खत्म हो गई। इससे महिलाओं रोजगार मिलने और आय होने से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इससे जुड़ती गई। आज स्थिति यह है कि जिले की आठों पंचायत समिति में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं विभिन्न रंगों की गुलाल बनाने में जुटी है। इस वर्ष 3000 किलो गुलाल आपूर्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इससे महिलाओं को 13.5 लाख से अधिक की आय होने की उम्मीद है। उल्लेखनीय यह है कि कोटा, चूरू, टोंक और भीलवाड़ा सहित कई जगह की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

ब्रास से आती खुशबू, पैकिंग में भी सुधार

महिला स्वयं सहायता समूह की ओर से तैयार की जा रही हर्बल गुलाल में समय-समय पर कई बदलाव कर क्वालिटी में सुधार किया गया है। पहले खुशबू कम आती थी। ऐसे में इसमेें प्राकृति रूप से खुशबू बढ़ाने के लिए ब्रास का उपयोग किया जाता है। इसकी पैकिंग सामान्य होती थी, जिसे भी अब आकर्षक और आधुनिक बनाया गया है। इसके साथ ही पहले यह सिर्फ हरा, गुलाबी और पीला रंग का गुलाल बनाते थे। अब हल्का पीला गुलाल जिसे मैरी गोल्ड के नाम से जाना जाता है वह भी बनाने लगे हैं।

यूं हुआ सफर का शुभारंभ

सन् उत्पादन मूल्य
2022 1700 5.10 लाख
2023 2100 6.30 लाख
2024 2800 6.90 लाख
2025 3000 13.5 लाख प्रस्तावित
नोट उत्पादन किलो में और मूल्य लाखों में है।

इनसे तैयार होती हर्बल गुलाल

हरा गुलाल : सीताफल की पत्तियां, नीम की पत्तियां और अरारोठ से
पीला गुलाल : हजारा के फूल, पत्तियों और अरारोठ से
गुलाबी गुलाल : अरारोठ, चेती गुलाब और चकुंदर से
हल्का पीला : पलाश के फूल, संतरा और उसके छिलके से

इस तरह से तैयार होती गुलाल

समूह को जिस रंग की गुलाल बनानी है उसके फूल-फल अथवा पत्तियों को पीसकर उसका अर्क निकाला जाता है। इस तरल को उबाला जाता है। अर्क को आरारोट में मिलाकर शेड पर सुखाना होता है। उसके बाद इसकी छनाई करके मौके पर ही उसकी पैकेजिंग की जाती है।

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