रायपुर में ‘स्त्री देह से आगे’ विषय पर संवाद कार्यक्रम! पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी ने कहा- जहां मन है, वहीं मां है..
CG Patrika News: होली हार्ट्स स्कूल के सभागार में शनिवार को पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी के इन शब्दों ने वहां मौजूद हर महिला की आत्मा को छू लिया।
CG Patrika News: “मां कोई रिश्ता नहीं, मां तो वह चेतना है, जिसमें समूचा बह्मांड धड़कता है। जहां मन है, वहीं मां है। और जहां मां नहीं, वहां संवेदना नहीं, संस्कार नहीं, सृजन नहीं।” होली हार्ट्स स्कूल के सभागार में शनिवार को पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी के इन शब्दों ने वहां मौजूद हर महिला की आत्मा को छू लिया।
‘स्त्री देह से आगे’ विषय पर संवाद कार्यक्रम में गुलाब कोठारी का हर वाक्य, हर भाव मातृत्व, स्त्रीत्व और भारतीय जीवनदर्शन की उस मिट्टी से सना था, जो अब खोती जा रही है। उन्होंने कहा, स्त्री भावना और संवेदना की धरती से आई है, जबकि पुरुष में अहम् और एरोगेंस है। जब तक वह इस द्वंद्व को नहीं समझेगा, स्त्री का सम्मान नहीं कर पाएगा।
कोठारी ने कहा, पैसा शरीर को सुख देता है, लेकिन आत्मा की संतुष्टि सिर्फ मां के हाथों से बने भोजन, उसकी आवाज, उसकी प्रार्थना से होती है। होटल के शेफ से बनी थाली शरीर को भरती है, मां के हाथों की थाली आत्मा को। यही तो आत्मीयता है, यही तो ‘घर’ है।
उन्होंने आधुनिक जीवनशैली की उस त्रासदी की ओर इशारा किया जहां स्त्री को सिर्फ समानता की होड़ में धकेल दिया गया है। लड़कियां लड़कों से आगे निकलना चाहती हैं, लेकिन स्त्रैण भाव घटता जा रहा है। जब दोनों ही एक जैसे हो जाएंगे, तब दाम्पत्य, सृजन और समाज सब असंतुलित हो जाएंगे।
स्त्री बनें चेतना की वाहक
गुलाब कोठारी ने कहा कि स्त्री को खुद को ‘शरीर’ नहीं, बल्कि आत्मा का रूप समझना होगा। मां की भूमिका इतनी बड़ी है कि देवता भी नहीं समझ पाते। वह प्राण का पोषण करती है, सिर्फ शरीर का नहीं। उसके भीतर वो दिव्यता है, जिसे पुरुष समझ ही नहीं सकता।
प्रार्थना करिए- घर में अच्छी आत्मा आए
उन्होंने एक मार्मिक बात कही कि आज कोई प्रार्थना नहीं करता कि घर में अच्छी आत्मा आए। हम बस शरीर पैदा करते हैं। आत्मा व संस्कार के लिए मां ही प्रार्थना करती है। मां आत्मा को संस्कारित करती है। यही है मां का देवत्व।
‘सात जन्मों’ का रिश्ता: भारत की आत्मा
कोठारी ने भारतीय संस्कृति की विशिष्टता को रेखांकित करते हुए कहा कि सिर्फ भारत ऐसा देश है जहां आत्माओं का रिश्ता ‘सात जन्मों’ का माना जाता है। यहां विवाह सिर्फ दो शरीरों का नहीं, दो आत्माओं का मिलन है। इसलिए मां बनना, बहू बनना, स्त्री बनना… ये कोई साधारण भूमिकाएं नहीं हैं।
हर कन्या में देखिए राष्ट्र का भविष्य
उन्होंने बच्चियों की ओर संकेत करते हुए कहा, तीसरी पीढ़ी मेरे सामने है। अगली पीढ़ी इतनी जागरूक हो कि हर घर में एक ‘सद्पुरुष’ बने, हर कन्या में राष्ट्र का भविष्य दिखे। भ्रूण हत्या सिर्फ हत्या नहीं, आत्मा के अपमान की चरम सीमा है।
स्त्री, सृजन की देवी है
अंत में कोठारी ने कहा-पेड़ अपने फल नहीं खाता। बीज समाज के लिए जीता है। ठीक उसी तरह मां, स्त्री और पत्नी समाज का निर्माण करती है, देश को दिशा देती है। मां सिर्फ देने वाली है उसी से सृजन है, उसी से धर्म है, उसी से भारत है।
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