दरअसल, कांग्रेस ने इस साल को संगठन मजबूत करने के लिए समर्पित किया है। इसके तहत कांग्रेस अपने जिलाध्यक्षों के हाथ मजबूत करने और जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया को बदलने की बात कर रही है। यह कहने और सुनने में भले ही अच्छा लगे, लेकिन इसकी राह बड़ी मुश्किल है। कांग्रेस में ब्लॉक, जिले से लेकर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर गुटबाजी और लॉबिंग होती रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने हाथ मजबूत करने के लिए खुद के समर्थकों को पार्टी में पद से लेकर टिकट दिलाने में जुटे रहते हंै। इस तरह की हालात से पार्टी को उबारना आसान नहीं है।
चयन कितना आसान-पारदर्शी होगा
वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भले ही दावा कर रहे हो कि जमीनी नेताओं की सलाह से जिलाध्यक्षों से चयन होगा। वहीं टिकट बंटवारे में संगठन की भूमिका अधिक होगी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी में गुटबाजी बहुत है। राज्यों में वरिष्ठ नेताओं में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ हैं। उन्होंने कहा कि जिलाध्यक्ष चयन के लिए जिन नेताओं को पर्यवेक्षक बनाकर गुजरात भेजा गया है, उनमें से अधिकांश अपने राज्यों में गुटबाजी में लगे हुए हैं। ऐसे में अब देखने वाली बात है कि यह नेता जिलाध्यक्षों का चयन कितनी पारदर्शी से करेंगे?
पार्टी के सामने चुनौतियां
1. बड़े नेताओं का असर: राज्यों के बड़े नेताओं का असर हर जिले में रहता है। यदि बड़े नेता की सलाह को दरकिनार करते हैं तो उनके समर्थक-कार्यकर्ताओं के पार्टी से दूर होने का खतरा भी है। नए लोगों को आगे बढ़ाने के लिए इस चुनौती से निपटना आसान नहीं है। 2. जाति धर्म समीकरण: हर जिले के अपने धर्म-जाति के समीकरण होते हैं। नए जिलाध्यक्षों के चयन के साथ लोकसभा और विधानसभा सीटों के उम्मीदवार चयन में इनका ध्यान रखना होता है। 3. आलाकमान तक लॉबिंग: कांग्रेस में जिले से लेकर राष्ट्रीय पदाधिकारी तक लॉबिंग की एक चेन चलती है। आलाकमान तक होने वाली इस लॉबिंग के जरिये संगठन में नियुक्तियां और टिकट वितरण होता रहा है।