वाक् युद्ध से दुनिया अवाक! सीरीज 2 : ट्रंप को मनाने व यूक्रेन का मनोबल बढ़ाने की चुनौती
विनय कौड़ा, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार


अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ वाइट हाउस में अप्रत्याशित वाक् युद्ध के बाद, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की डैमेज कंट्रोल में उतर गए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि अमरीकी समर्थन उनके लिए ‘अत्यंत आवश्यक’ है और वे यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधन की डील करने को तैयार हैं। नाटो प्रमुख मार्क रुटे ने भी ट्रंप-जेलेंस्की बैठक को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है कि जेलेंस्की को अमरीकी नेतृत्व के साथ अपने संबंधों को पुन: सुधारने का मार्ग ढूंढना होगा। अमरीकी नाराजगी के व्यापक अभिप्राय पश्चिमी जगत का हर देश समझता है। ट्रंप का तर्क यह है कि संघर्ष के इस मोड़ पर यूक्रेन अपनी शक्ति खो चुका है। चूंकि जेलेंस्की के पास अब कोई मजबूत कूटनीतिक कार्ड नहीं है तो रूस से शांति समझौता उनकी मजबूरी है। अमरीकी अधिकारियों की बेबाक टिप्पणियों से स्पष्ट है कि ट्रंप का रुख युद्ध को किसी भी कीमत पर समाप्त करने का है। अगर शांति वार्ता के लिए यूक्रेन को रूस के समक्ष झुकना भी पड़े, तो भी इससे गुरेज नहीं करना चाहिए क्योंकि ट्रंप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ रिश्ते सुधारने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
शीतयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त पश्चिमी गठबंधन में यह सबसे विनाशकारी विभाजन है। इस फूट ने इस विचार को मजबूती दी है कि ट्रंप के नए कार्यकाल की शुरुआत में ही ‘मुक्त विश्व’ टूटने की कगार पर पहुंच गया है, जिसे नए नेतृत्व की आवश्यकता है। यूरोप ने जेलेंस्की के पक्ष में एकजुट होकर अपना समर्थन तो जताया है लेकिन घटनाक्रम यही दर्शाता है कि तीन साल पहले आंरभ हुए यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों में पश्चिमी देशों के बीच मतभेद गहरे हो रहे हैं। फिलहाल सभी यूरोपीय देशों का फोकस इस बात पर है कि बीच-बचाव का रास्ता निकाल ट्रंप को मना भी लिया जाए और साथ ही यूक्रेन का मनोबल भी बरकरार रखा जाए। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने लंदन में पश्चिमी नेताओं के सम्मेलन में जेलेंस्की को सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित कर यूक्रेन की रक्षा के लिए मजबूत गठबंधन का वादा किया। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि यूक्रेन के सहयोगी देशों को उसे लोहे के कंटीले जानवर जैसे बनाना होगा जो संभावित आक्रमणकारियों के लिए असहनीय हो।
फ्रांस और ब्रिटेन ने यूक्रेन में एक महीने के सीमित संघर्षविराम का प्रस्ताव रखा। दरअसल यूरोपीय नेतृत्व सक्रिय रूप से यूक्रेन की रक्षा के लिए एक ठोस योजना बनाने की दिशा में चल पड़ा है। लेकिन अमरीका इन यूरोपीय प्रयासों से खुश नहीं है। अमरीकी खुफिया एजेंसियों की प्रमुख तुलसी गबार्ड ने उन यूरोपीय देशों को आड़े हाथों लिया है, जो जेलेंस्की के समर्थन में खड़े हो रहे हैं। यूरोपीय देशों को आशंका है कि यूक्रेन में अपने लक्ष्य पूरे करने पर पुतिन के हौसले और बुलंद हो जाएंगे। हालांकि, यूक्रेन की स्थिति उतनी भी कमजोर नहीं है, जितना आलोचक इसे प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। अपनी कुछ जमीन खोने के बावजूद, यूक्रेन ने इस युद्ध में अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखा है और अपनी सैन्य क्षमता के माध्यम से रूस को भारी नुकसान पहुंचाया है। वहीं, रूस की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है, चाहे वह सैन्य हो या आर्थिक। युद्ध के प्रभाव से रूस की अर्थव्यवस्था भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।
हालांकि रूस ने अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए उत्पादन में तेजी लाने का प्रयास किया है लेकिन यह प्रयास युद्ध की दिशा को निर्णायक रूप से बदलने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। रूस को ईरान और उत्तर कोरिया से जो सैन्य सहायता मिल रही है, वह भी युद्ध के परिणाम को एकतरफा बदलने में सफल नहीं हो पाई है। अगर यूक्रेन की सैन्य स्थिति की बात करें, तो उसे पश्चिमी देशों से निरंतर सहायता मिल रही है, जो उसकी सैन्य क्षमता बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई है। पश्चिमी सहायता के बलबूते ही यूक्रेन ने युद्ध में गतिरोध बनाकर रखा है। जेलेंस्की अब अपने राजनीतिक जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। उन्हें या तो इस दरार को पाटना होगा या फिर अमरीकी सहायता के बिना युद्ध जारी रखना होगा। अगर वे इस समय सत्ता छोड़ते हैं, तो युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है और राजनीतिक स्पष्टता में भी कमी आ सकती है। यदि अमरीकी सैन्य सहायता में रुकावट आती है, तो यूरोप को उसकी जगह भरने के लिए अपनी नई भूमिका तलाशनी होगी। यूक्रेन की मदद के लिए यूरोपीय देशों को ऐसे हथियार और युद्ध सामग्री खरीदने के लिए तैयार रहना होगा जो वे तुरंत प्रदान नहीं कर सकते।
इसके साथ ही, यूरोप को अपनी सैन्य उत्पादन क्षमता भी बढ़ानी होगी ताकि वह यूक्रेन को दी जा रही सहायता को निरंतर जारी रख सके। अमरीका का दृष्टिकोण काफी हद तक रूस के रुख से मेल खाता है, जो अक्सर पश्चिमी देशों पर यह आरोप लगाता है कि वे अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन यूरोपीय नेता यूक्रेन के समर्थन को लोकतांत्रिक मूल्यों और रूस के खिलाफ एक साझा मोर्चा बनाए रखने के रूप में देख रहे हैं। यूरोप के सामने चुनौती इसलिए भी अहम है क्योंकि रूस का यूरोपीय राजनीति और सुरक्षा पर गहरा प्रभाव है। यदि यूरोप ने रूस की विजय को रोकने में सफलता पाई, तो न केवल यूक्रेन की स्वतंत्रता बनी रहेगी, बल्कि यह यूरोप के समग्र सुरक्षा ढांचे को भी मजबूत करेगा। लेकिन, यह यूरोपीय देशों के सामूहिक प्रयास और एकजुटता पर निर्भर करेगा।
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