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दुर्लभ बीमारियां : अंतरराष्ट्रीय पेटेंट नियमों में बदलाव की जरूरत

— डॉ.वीर सिंह
(प्रोफेसर एमेरिटस, जीबी पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विवि )

जयपुरApr 23, 2025 / 02:10 pm

विकास माथुर

वर्ष-दर-वर्ष बढ़ते और विगत वर्षों के तापक्रम के रिकॉर्ड तोड़ती जलवायु परिवर्तन की लहर हर बार एक नई कहानी लेकर आती है। इस वर्ष तो सर्दी और गर्मी के बीच नरम सुहावने मौसम का कोई बफर ही नहीं रहा। मार्च के महीने में ही मई जैसी गर्मी कहर बरपाने लगी थी। सार्वभौमिक गर्माहट और जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया अपने आप में पृथक नहीं, यह पृथ्वी के संपूर्ण जीवन को प्रभावित करने वाली है।
जीवन के वर्तमान को ही नहीं, भविष्य को भी कुप्रभावित करने वाली है। चरम मौसम (पीक वेदर) की घटनाओं को भी जलवायु परिवर्तन प्रक्रियाओं से अलग नहीं किया जा सकता। वर्ष 2024 में, भारत ने 322 दिनों में चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया। वर्ष 2023 में 318 दिन चरम घटनाओं के नाम थे। चरम मौसम घटनाओं के कारण लगभग 4.07 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ। भारत में कृषि और मानसून का चोली-दामन जैसा साथ रहा है। वर्ष में फसल कैसी होगी, कितना उत्पादन होगा, खाद्य सुरक्षा की स्थिति कैसी होगी, कृषि उत्पादों की कीमतें कितनी कम या अधिक होंगी- यह सब निर्भर करता है कि वर्ष में मानसून की स्थिति क्या होगी।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा किए गए वैश्विक अनुमान देश में सामान्य से लेकर सामान्य से अधिक वर्षा का पूर्वानुमान लगाते हैं। इससे लगता है कि इस वर्ष देश के कृषि उत्पादन पर अधिक दुष्प्रभाव पडऩे वाला नहीं है। परंतु सार्वभौमिक गर्माहट प्रक्रियाओं के मौसम के सामान्य व्यवहार पर हावी होते वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों पर अक्सर पानी फिर जाता है। भारत का कृषि क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है और जलवायु परिवर्तन द्वारा संचालित अनियमित मौसम पैटर्न के कारण एक अभूतपूर्व संकट का सामना करने वाला भी यही क्षेत्र है।
अप्रत्याशित मानसून, लंबे समय तक सूखा, बेमौसम वर्षा और अत्यधिक उष्ण लहर (हीटवेव) के कारण फसल-चक्र बाधित हो रहे हैं और करोड़ों किसानों की आजीविका को खतरा पैदा हो रहा है। ऐसा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र को ये खतरे वर्तमान स्तर पर ही बने रहेंगे। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता जाएगा, जैसा कि लगभग अवश्यम्भावी है, भारत की खाद्य सुरक्षा अधिकाधिक जोखिम में पड़ती जाएगी। जलवायु परिवर्तन अब दूर का खतरा नहीं है। इसने पहले से ही भारत के कृषि परिदृश्य को कुप्रभावित किया है।
सिंचाई के लिए मानसून वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर हमारी कृषि, मौसम के पैटर्न में कठोर परिवर्तनों का एक अशुभ-सा अनुभव कर रही है। जलवायु परिवर्तन के हाथों मौसम में विनाशक परिवर्तन उभरे हैं- बढ़ता तापमान, उष्ण लहर, बेमौसम वर्षा और ओलावृष्टि। भारतीय मानसून, जो देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा है, द्रुत गति से अनिश्चित हो गया है। कुछ क्षेत्र विनाशकारी बाढ़ों का शिकार हो रहे हैं, जबकि अन्य लंबे समय तक सूखे से ग्रसित रहते हैं। वर्ष 2023 में महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख कृषि राज्यों में मानसून में देरी हुई, जिससे बुवाई में बहुत देरी हुई, जबकि पंजाब और हरियाणा में अत्यधिक वर्षा हुई। वर्षा और सूखे का दुष्चक्र भविष्य में और भी विनाशकारी होने की आशंका है। वर्ष 2022 में हीटवेव के चलते तापमान उत्तर भारत के कई हिस्सों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर उछाल मार गया, जिससे गेहूं की पैदावार 10 से 15 प्रतिशत तक कम हो गई।
भारत सरकार ने घरेलू कीमतों को स्थिर रखने के लिए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि जलवायु के झटके विश्व खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं को कैसे बाधित कर सकते हैं। मार्च 2024 में मध्य भारत में बेमौसम ओलावृष्टि ने हजारों हेक्टेयर रबी फसलों को नष्ट कर दिया और किसानों को कर्ज के दलदल में धकेल दिया। अनियमित मौसम का प्रभाव भारत की खाद्य अर्थव्यवस्था में पहले से ही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक अध्ययन में कहा गया है कि तापमान में वृद्धि जारी रहने पर 2050 तक गेहूं उत्पादन में 6 से 23 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा आयातक है। अनियमित वर्षा-चक्र दालों की कम उत्पादकता का सबसे बड़ा कारण है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न कृषि क्षति की मानवीय लागत चौंका देने वाली है। छोटे और सीमांत किसान, जो भारत के 85 प्रतिशत से अधिक कृषि समुदाय का हिस्सा हैं, सबसे अधिक प्रभावित हैं। खेती में बढ़ती लागत और फसलों की बर्बादी किसानों को कर्ज के जंजाल में फंसा रही है और उन्हें खेती छोडऩे के लिए बाध्य कर रही है। चुनौतियां अपार हैं। भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। प्रश्न यह नहीं कि क्या जलवायु परिवर्तन कृषि को प्रभावित करेगा, प्रश्न यह है कि क्या भारत इस संकट को रोकने के लिए समुचित प्रबंधन कर सकता है?

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