उपचार की बेहतर सुविधा व जागरूकता से बचाव संभव
नवीनतम पद्धति से उपचार की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद कई बीमारियों पर काबू पाना आज भी मुश्किल होता जा रहा है। जबकि हेपेटाइटिस-बी से मौतों के आंकड़े सेहत के क्षेत्र में इसी चिंता को बढ़ाने वाले हैं। वर्ष 2018 में राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस कार्यक्रम के तहत किए जाने वाले उपायों के बावजूद इस बीमारी […]


नवीनतम पद्धति से उपचार की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद कई बीमारियों पर काबू पाना आज भी मुश्किल होता जा रहा है। जबकि हेपेटाइटिस-बी से मौतों के आंकड़े सेहत के क्षेत्र में इसी चिंता को बढ़ाने वाले हैं। वर्ष 2018 में राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस कार्यक्रम के तहत किए जाने वाले उपायों के बावजूद इस बीमारी से होने वाली मौतों का आंकड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा। जाहिर है स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति भी अभी लोगों में जागरूकता नहीं आ पाई है। ऐसी उदासीनता की वजह से भी बीमारियों पर पूरी तरह काबू पाने के अभियानों को धक्का लगता है। देखा जाए तो किसी भी देश में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति उसके विकसित या विकासशील होने के पैमाने को तय करती है। इस बात को स्वीकार करना होगा कि आजादी के बाद हमने चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांतिकारी उपलब्धियां हासिल की है। अधिकांश बीमारियों का इलाज भी संभव हो गया है। केवल सवाल सिर्फ इलाज पर ध्यान देना ही नहीं बल्कि इससे भी ज्यादा जरूरत इस बात की है कि किसी रोग की चपेट में आने पर मरीजों को तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो।
हेपेटाइटिस-बी की चपेट में आकर मरने वालों की संख्या जहां वर्ष 2019-20 में 173 थी वहीं वर्ष 2023-24 में यह संख्या 972 तक पहुंच गई है। जाहिर है कि गत पांच साल में मौतों का आंकड़ा पांच गुणा बढ़ गया है। हैरत इस बात की है कि इस बीमारी के उपचार के लिए सरकार की ओर से मुफ्त टीकाकरण के साथ-साथ मुफ्त दवाइयों की सुविधा भी उपलब्ध है। ऐेसे में माना जा सकता है कि लोगों तक सरकारी योजनाओं की पहुंच भी ठीक से नहीं हो पा रही है। लोगों में जागरूकता के प्रयासों में भी गति लाना जरूरी है। हेपेटाइटिस-बी जैसी गंभीर बीमारियों के बारे में लोगों के पास पर्याप्त जानकारी का अभाव रहता है। समय रहते लक्षणों की पहचान नहीं होने से उपचार में भी देरी होना स्वाभाविक है। यही वजह है कि समय पर चिकित्सकीय राय नहीं मिलने से बीमारी बड़ा रूप धारण कर लेती है। हेपेटाइटिस-बी से मौतों की संख्या कम नहीं होने की सबसे बड़ी वजह यही मानी जा सकती है। जब तक लोग खुद जागरूक नहीं होंगे, तब तक किसी भी स्वास्थ्य अभियान को पूरी सफलता नहीं मिल सकती। बीमारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह समाज का भी कर्तव्य बनता है। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य सार्वजनिक मंचों पर जागरूकता अभियान और समय पर इलाज दोनों के जरिए ही स्वस्थ समाज की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है।
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