‘अन्नाद भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न सम्भव:’- गीता.3/14।। गाय का दूध मां के दूध के बाद अमृत माना जाता है। ‘जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन’ – सब परिचित हैं, इस कहावत से। भारत के सात्विक ज्ञान का आधार शुद्ध अन्न ही है। अन्न को हम ब्रह्म कहते हैं। अन्न से ब्रह्म शरीर में प्रवेश करता है, अन्न से ही शरीर का निर्माण होता है। दूषित अन्न ही मृत्यु का कारण है।
पार्थिव सृष्टि पंचभूतों पर टिकी है। पृथ्वी लक्ष्मी है- शरीर है, धन है, जड़ है। सोना,चांदी, हीरा सभी पार्थिव है, जड़ पदार्थ है। निष्प्राण हैं। उपभोक्तावाद, भौतिकवाद की जद भी यही है।
पूर्व, अर्द्धगोलक उष्णप्रदेश (आग्नेय ) है, पश्चिम, सौम्य (वारूणी) प्रदेश है। पूर्व ऊर्जा प्रधान (एनर्जी) तथा पश्चिम पदार्थ (मैटर) प्रधान है। यही भौतिकवाद का मूल कारण है। सोम निराकार तत्व है, अग्नि (साकार) में आहुत होता है।
आज से भारत-अमरीका में व्यापार समझौते के लिए दूसरे दौर की वार्ता शुरू होगी। डेयरी उत्पादों को लेकर बड़ी सांस्कृतिक अड़चन आ रही है। कृषि और डेयरी के क्षेत्र को पूरी तरह अमरीका के लिए नहीं खोला जा सकता। अमरीका शुद्ध व्यापार की दृष्टि रखता है, जबकि भारत में-आस्था, शुद्धता और संस्कृति मुख्य आधार है। अमरीका दूध भी औद्योगिक स्वरूप में पैदा करता है। मात्रा बढ़ाना पहला लक्ष्य है। उससे ज्यादा वह पशु आहार में मांस का प्रयोग अनिवार्य रूप से करता है। इसी कारण हम ‘मैड काऊ डिजीज’ देख चुके हैं। लाखों गायों को काटा गया था।
आज तो गाय का अन्न और भी वीभत्स हो गया है। चारा भी कीटनाशक युक्त है। दूध बढ़ाने के लिए कई प्रकार के इंजेक्शन दिए जाते हैं। कितनी कृत्रिम (सिंथेटिक) सामग्री पेट में जाती है। हमारा शरीर केवल प्राकृतिक पदार्थों को ही पचा सकता है। भारत में गायों के अन्न की शुद्धता भी निश्चित रही है। दूध तो हम भी बढ़ाना चाहते हैं। गायों को चारे के साथ बांटा (तिल की खली), कपास के बीज (बिनौले), नारियल आदि खिलाते हैं। आज तो इनको भी कीटनाशकों की नजर लग गई। नकली दूध, पनीर, चॉकलेट से बाजार अटे पड़े हैं। सही पूछें तो गाय का दूध दवा का काम करता है।
दूध को सामान्य तापमान से शून्य डिग्री तक लाना पड़ता है। इसे पीते ही शरीर की ऊर्जा इसे 37 डिग्री तक लाने में जुट जाती है। अन्य सभी क्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं।
सांस्कृतिक संवेदनाओं का प्रश्न
जीवन व्यापार अर्थ-तंत्र से भिन्न है। धन ही जीवन का सर्वेसर्वा नहीं है। भारत में तो आने-जाने का रूप ही लक्ष्मी (चंचला) का है। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप को भारत की संवेदनशील जीवन शैली का सम्मान करना चाहिए। यह सही है कि चीन के प्रतिबंध से अमरीका में अनाज और दूध उद्योग बहुत प्रभावित हुआ है।
जब तक अमरीका अपनी पशु-आहार नीतियों को निरामिष (शाकाहारी) नहीं बना लेता, तब तक डेयरी उत्पाद खरीदने के लिए भारत पर दबाव डालना उचित नहीं होगा। व्यापार तक से जुड़ी आस्था आत्मा की शक्ति है। आर्थिक सम्पन्नता में हम अमरीका से पीछे हो सकते हैं, किन्तु आत्मबल में बहुत आगे हैं। हमारे विकास की वर्तमान गति इसका प्रमाण है। यह सांस्कृतिक संवेदनाओं का प्रश्न है। गोमाता और मांसाहार सपने में भी साथ नहीं रह सकते। हम पहले भी अमरीकी पीएल-480 नामक गेहूं का प्रयोग कर चुके हैं।
कृषि तो एक कदम और आगे है। जितने प्रयोग गायों की नस्लों पर हुए हैं, उससे अधिक प्रयोग कृषि में बीजों की उन्नत प्रजातियों के नाम पर किए जा रहे हैं। यह भी स्पष्ट है कि कोई भी उन्नत बीज प्राकृतिक बीज से अच्छा प्रमाणित नहीं हो पाया। हमारे कृषि अधिकारी ‘जीएम सीड्स ’ के नाम पर किसानों को भ्रमित करते रहते हैं। आप जीएम कॉटन के कपड़े पहनकर देख लें। असलियत सामने आ जाएंगी। उन्नत बीज, उर्वरक, कीटनाशकों ने मिलकर इस देश में पहले ही कैंसर की बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। ट्रंप साहब ! विश्वास न हो तो कभी हमारी ‘कैंसर ट्रेन’ में यात्रा करके देख लें। हमारे खुदरा दुकानदारों को तो आप पहले ही खत्म कर चुके। कृषि व पशुपालन को व्यापार के लिए मुक्त कर दिया तो हमारे छोटे किसान व पशुपालक खत्म हो जाएंगे क्योंकि बड़ी संख्या में लोग कृषि व पशुपालन से जुड़े हैं। मान्यवर! बहुत देश हैं, आपकी मुट्ठी में, दूध और अनाज के यमराज को वहां भेजें तो ठीक। भारत माता को आसुरी शक्तियों ने पहले ही आहत कर रखा है। हमें क्षमा करें!
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