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फास्ट फैशन बढ़ा रहा टेक्सटाइल वेस्ट

— डॉ. नीलू तिवारी, स्वतंत्र लेखिका

जयपुरApr 21, 2025 / 04:26 pm

विकास माथुर

हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेक्सटाइल वेस्ट यानी कपड़ा अपशिष्ट के विषय पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे फास्ट फैशन के बदलते वैश्विक चलन से भी जोड़ा। एक शोध का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि एक प्रतिशत से भी कम कपड़ा कचरे को नए कपड़ों में रिसाइकिल किया जाता है। गौरतलब है कि भारत कपड़ा कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो सरल समाधानों की जल्द आवश्यकता की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। कपड़ा अपशिष्ट वह कपड़ा या परिधान सामग्री है, जो अनुपयोगी हो जाती है या जिसका उपयोग नहीं किया जा सकता। कपड़े और सहायक सामग्री बनाते समय उद्योग भारी मात्रा में कपड़ा अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं। उत्पादन के बाद इन सामग्रियों का कोई उपयोग नहीं होता और इस कारण से इन्हें फेंक दिया जाता है।
इसके दो प्रमुख स्रोत हैं। पहला औद्योगिक स्रोत, जिसमें कपड़ा निर्माण, छपाई और परिष्करण प्रक्रियाओं से निकलने वाला कचरा आता है। दूसरा उपभोक्ता स्रोत, जिसमें उपयोग किया गया कपड़ा होता है। इसी तरह फास्ट फैशन के तहत स्टाइलिश कपड़ों का बड़े पैमाने पर निर्माण और डिजाइनों की कम लागत पर उनका उत्पादन किया जाता है। फास्ट फैशन का मॉडल फास्ट उत्पादन और विवाद का विषय रहा है। वैश्विक वस्त्र उद्योग में फास्ट फैशन का बड़ा योगदान है। फास्ट फैशन अपेक्षाकृत सस्ते वस्त्रों का उत्पादन उद्योग पारंपरिक रूप से चार सत्रों तक सीमित रहता था, जिसमें डिजाइनर ग्राहकों की वस्त्रों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए महीनों पहले ही काम करते थे। एक अनुमान के अनुसार, विश्व स्तर पर हर साल 80 बिलियन नए कपड़े खरीदे जाते हैं। अधिकांश फास्ट फैशन उद्योग बिना इस्तेमाल किए कपड़ों को फेंकते हैं। अमेरिका के लोगों की ओर से उपयोग किए जाने वाले कपड़ों का अनुमानतः 85 प्रतिशत यानी कि लगभग 3.8 बिलियन पाउंड लैंडफिल ठोस कचरे के रूप में ले जाया जाता है।
असल में कपड़ों के माध्यम से केमिकल से बने कपड़ों का जीवन में जमकर उपयोग हो रहा है। उन्हें आमतौर पर इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। भारत में राजस्थान एवं पंजाब जैसे राज्य अपने रंगाई और छपाई उद्योग के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इस कपड़ा छपाई उद्योग में लगभग 400 से भी अधिक अन्य उद्योग शामिल हैं, जो कपड़ा छपाई में केमिकल उपयोग में लाते हैं। इस केमिकल को नदियों या तालाबों में बहा दिया जाता है। इस अपशिष्ट में आल्टीलाइन कम्पाउंड, अम्लीय रंग, ब्लीचिंग एजेंट, क्लोरीन, अल्कली और सॉल्ट होते हैं। साथ ही अपशिष्टों में ईंधन, ताप, रासायनिक धातुएं आदि भी शामिल होती हैं। कपड़ा प्रोसेस के लिए पानी में केमिकल मिलाए जाते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक है। इसके अलावा इस पानी को पर्यावरण में ही छोड़ दिया जाता है। ये सभी भूमिगत जल को प्रदूषित कर देते हैं।
ऐसे पर्यावरण प्रदूषण से न केवल कारखानों, जीवों और कपड़ा निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि संग्रहण स्तर पर निष्क्रियता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या उपयुक्त कपड़ों के पुन: उपयोग के लिए डिजाइनर सिर्फ नए कपड़ों में बदलाव कर सकते हैं या फिर व्यावसायिक उत्पादन पर भी सोचा जाना चाहिए, इसलिए रीयूज, रिड्यूस और रिसाइकल कपड़ा पुनर्चक्रण का सर्वोत्तम उपाय है, जो पर्यावरण को सुरक्षित कर सकता है। कपड़ा पुनर्चक्रण फाइबर, यार्न, फैब्रिक में पुनः प्राप्त करने और सामग्री से नए उपयोगी उत्पाद बनाने में समर्थ है। कपड़ा अपशिष्ट के दूरगामी असर को लेकर अब तक कई अध्ययन हुए हैं। कपड़ा पुनर्चक्रण पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त उपाय है। यह संरक्षण, पर्यावरण, स्वच्छता में पुनः उपयोग एवं आर्थिक लाभ से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा कपड़ा पुनर्चक्रण की प्रक्रिया सामान्यतः बिना शांति भंग, सामाजिक और पर्यावरणीय हानि के होती है।

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