आइए, उन पांच प्रमुख कारणों पर नजर डालते हैं, जिन्होंने भारतीय शेयर बाजार को इस भारी गिरावट की ओर धकेल दिया:
1. टैरिफ प्लान को लेकर अनिश्चितता
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान ने वैश्विक बाजारों में हलचल मचा दी है। अप्रैल में लागू होने वाले इन टैरिफ्स को लेकर निवेशकों में भारी बेचैनी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स न्यूज को बताया कि ट्रंप बुधवार, 2 अप्रैल को व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में दोपहर 3 बजे इस योजना का खुलासा करेंगे। ट्रंप ने इसे “मुक्ति दिवस” (Liberation Day) करार देते हुए कहा कि यह उन देशों को सबक सिखाने के लिए है, जो अमेरिका का “फायदा उठाते” हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत पर इसका सीधा प्रभाव सीमित हो सकता है, क्योंकि अमेरिका अपने आधे से ज्यादा आयातित सामानों पर टैरिफ कम कर रहा है। फिर भी, टैरिफ की अनिश्चितता ने बाजार में अस्थिरता को बढ़ावा दिया है, जिससे निवेशक सतर्क हो गए हैं।
2. आरबीआई की मौद्रिक नीति कमेटी की बैठक
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की मौद्रिक नीति कमेटी की बैठक 7 से 9 अप्रैल के बीच होने वाली है। वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच यह बैठक ब्याज दरों और नीतिगत फैसलों के लिए अहम मानी जा रही है। बाजार को उम्मीद है कि 9 अप्रैल को आरबीआई 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की घोषणा कर सकता है। हालांकि, अगर यह उम्मीद पूरी नहीं हुई या वैश्विक दबावों के चलते सख्त नीति अपनाई गई, तो बाजार पर और दबाव बढ़ सकता है। निवेशक इस बैठक के नतीजों को लेकर सावधानी बरत रहे हैं, जिसने बिकवाली को और हवा दी। 3. चौथे क्वार्टर के नतीजों पर सस्पेंस
भारतीय कंपनियों के चौथे क्वार्टर (Q4 FY25) के नतीजे अब बाजार की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। पिछले तीन क्वार्टर्स के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद निवेशकों को उम्मीद है कि इस बार कुछ सुधार देखने को मिलेगा। मार्च 2025 में सेंसेक्स और निफ्टी में 5.6% की तेजी आई थी, लेकिन अगर Q4 के नतीजे अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे, तो यह रिकवरी पटरी से उतर सकती है। जानकारों का मानना है कि वित्त वर्ष 2025-26 के पहले और दूसरे क्वार्टर में ठोस सुधार की संभावना है, लेकिन अभी अनिश्चितता बरकरार है, जिससे निवेशक जोखिम लेने से बच रहे हैं।
4. विदेशी निवेशकों की बिकवाली
विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) लगातार भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। अमेरिकी डॉलर की मजबूती और उच्च बॉन्ड यील्ड के चलते FII भारत जैसे उभरते बाजारों से पूंजी हटा रहे हैं। जनवरी 2025 से अब तक FII ने 1.33 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बिकवाली की है। यह बिकवाली बाजार में भारी दबाव का कारण बन रही है, क्योंकि घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) भी ऊंचे स्तरों पर फंसे होने के कारण सक्रिय रूप से खरीदारी नहीं कर रहे हैं।
5. वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और तेल की कीमतें
वैश्विक बाजारों में अस्थिरता, बढ़ती तेल की कीमतें और अमेरिकी आर्थिक मंदी की आशंका ने भी भारतीय बाजार को प्रभावित किया है। मजबूत अमेरिकी डॉलर ने रुपये को 87.28 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा दिया, जिससे आयात महंगा हो गया और महंगाई की चिंता बढ़ गई। इसके अलावा, तेल की ऊंची कीमतों ने ऑटोमोबाइल और मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेक्टरों पर दबाव डाला, जिसका असर बाजार पर साफ दिखाई दिया।