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पुलिस की तत्परता और मानवीय पहलनिर्मला देवी की स्थिति को समझते हुए, हजरतगंज पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की। महिला पुलिसकर्मियों की सहायता से दोनों बेटों को बुलवाया गया। पुलिस ने उन्हें अपनी मां की देखभाल करने की सख्त हिदायत दी और सुनिश्चित किया कि निर्मला देवी को सुरक्षित उनके घर भेजा जाए।
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यह घटना समाज में बढ़ती संवेदनहीनता और पारिवारिक मूल्यों के क्षरण को उजागर करती है। एक समय था जब बुजुर्गों की देखभाल को संतान का परम कर्तव्य माना जाता था, लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में यह जिम्मेदारी कहीं खोती नजर आ रही है।
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वृद्धावस्था में परित्याग: एक गंभीर समस्यानिर्मला देवी का मामला अकेला नहीं है। देशभर में अनेक बुजुर्ग माता-पिता अपने ही बच्चों द्वारा उपेक्षित और परित्यक्त किए जा रहे हैं। यह समस्या न केवल सामाजिक बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी चिंताजनक है।
भारत में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण के लिए 2007 में एक कानून पारित किया गया था, जो संतान को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने के लिए बाध्य करता है। इस कानून के तहत, यदि संतान अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करती है, तो उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
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समाज की भूमिकासमाज के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है कि वह अपने आसपास हो रही ऐसी घटनाओं के प्रति संवेदनशील रहें और आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करें। समाज की सामूहिक जागरूकता और समर्थन से ही हम इस समस्या का समाधान खोज सकते हैं।