Kota Stone Pollution: नदी में प्रदूषण से कोटा में मगरमच्छ सफेद हो रहे हैं। कोटा स्टोन की स्लरी और केमिकल युक्त पानी में विचरण करने से इनका रंग ही बदल गया है। चन्द्रलोई नदी और इसमें मिलने वाले रायपुरा नाले में 100 से अधिक मगरमच्छ विचरण करते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार स्लरी युक्त पानी में रहने से मगरमच्छों का रंग सफेद हो गया गया। चंबल नदी की सहायक नदी चन्द्रलोई अलनिया बांध से शुरू होती है। करीब 17 किलोमीटर बहने के बाद नौटाना और मानसगांव के पास चंबल नदी में मिल जाती है। चन्द्रलोई नदी में रायपुरा नाला मिलता है। इस नाले में दो दर्जन मगरमच्छ विचरण करते हैं। नाले मे कोटा स्टोन फैक्ट्रियों की स्लरी (कोटा स्टोन की चिराई से निकलने वाला सफेद मलबा) और कारखानों का केमिकल प्रवाहित किया जाता है। इससे नदी के जल में खतरनाक रसायन घुल रहे हैं। जिनके लगातार संपर्क में रहने से मगरमच्छों का रंग ही बदल गया है।
पिछले साल चन्द्रलोई नदी में विचरण करने वाले आधा दर्जन मगरमच्छों की रहस्यमयी मौत हो गई थी। मौतों के कारणों से अभी तक पर्दा नहीं उठ पाया है। इन मगरमच्छों की मौत का मामला एनजीटी में भी पहुंचा था। एक कमेटी का गठन कर जांच के निर्देश दिए गए थे। इससे पहले भी वर्ष 2022 में मगरमच्छों की असमय मौत हो चुकी है।
चन्द्रलोई नदी और रायपुरा नाले में मगरमच्छों की अधिकता के चलते सरकार की ओर से क्रोकोडाइल पार्क का प्रोजेक्ट तैयार किया था। ताकि मगरमच्छ इस पार्क में सुरक्षित विचरण कर सके। लेकिन अब तक यह परियोजना फाइलों से बाहर नहीं आई है।
प्रदूषित पानी से हो रहे सफेद
फैक्ट्रियों से निकलने वाले दूषित पानी की वजह से क्षेत्र के मगरमच्छों का रंग सफेद हो गया है। जब ये क्षेत्र विशेष से दूसरी जगह पर जाते हैं तो फिर से रंग बदल जाता है। संबंधित विभागों को नदी में प्रदूषण के मामले को गंभीरता से लेना चाहिए। कैमिकल का इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
आदिल सैफ, वाइल्डलाइफ कंजर्वेशनिस्ट
रसायन के संपर्क से दूरगामी दुष्प्रभाव
स्लरी व कैमिकल के प्रभाव से मगरमच्छों की स्किन सफेद हो रही है। इनके स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव की स्टडी होनी चाहिए। मगरमच्छ लगातार प्रदूषण के बीच रहेंगे तो निश्चित रूप से इनकी त्वचा पर दुष्प्रभाव तो पड़ेगा। लगातार कैमिकल जमा होने से शरीर के भीतर भी दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं।