नीम की जड़ से प्रकट हुई थी माता की प्रतिमा
माना जाता है कि एक दिन नीम के पेड़ की जड़ों से माता की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी, जिसे देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। यह चमत्कारिक दृश्य देखने के बाद सुखदेव प्रसाद बर्मन ने स्थानीय लोगों के सहयोग से माता की सेवा और स्थापना हेतु इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। तब से लेकर आज तक बर्मन परिवार की तीन पीढ़ियाँ निःस्वार्थ भाव से माता की सेवा में लगी हुई हैं। यह मंदिर न केवल पूजा-अर्चना का स्थान है, बल्कि एक जीवंत आस्था और चमत्कार का प्रतीक भी है।
दूर-दराज से आते हैं श्रद्धालु
यह मंदिर स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ-साथ दूर-दराज से आने वाले भक्तों के लिए भी विशेष आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां माता रानी से प्रार्थना करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और जीवन की कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं। शाम के समय यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन और आरती में सम्मिलित होते हैं। मंदिर के वर्तमान पुजारी बद्री पंडा भक्तों की फरियाद को माता रानी तक पहुंचाने का कार्य पूरी श्रद्धा से करते हैं।
बर्मन परिवार निभा रहा है सेवा का दायित्व
मंदिर की सेवा में आज भी भीम बर्मन, नकुल बर्मन, अर्जुन बर्मन और करन बर्मन पूरी निष्ठा और समर्पण से जुटे हुए हैं। समय-समय पर मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण भी कराया जाता रहा है, ताकि श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएँ मिल सकें।
नवरात्रि पर विशेष अनुष्ठान और आयोजन
नवरात्रि के पावन अवसर पर मरही माता मंदिर में विशेष धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला जारी है। मंदिर परिसर को भव्य रूप से सजाया गया है और वातावरण में भक्ति की गूंज सुनाई दे रही है।
अष्टमी को हवन, कन्या पूजन और भंडारा
अष्टमी तिथि 6 अप्रैल को दोपहर 12 बजे पूर्णाहुति हवन का आयोजन किया जाएगा। इसके बाद दोपहर 2 बजे से कन्या पूजन और विशाल भंडारे का आयोजन किया गया है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेंगे।
नवमी पर विसर्जन और शोभायात्रा
नवमी तिथि 7 अप्रैल को जवारों का विसर्जन विधिवत रूप से किया जाएगा। शाम 7 बजे एक शोभायात्रा निकाली जाएगी जो ईश्वरीपुरा वार्ड, सन्मुख गली, गौतम मोहल्ला होते हुए कटनी नदी तक पहुंचेगी। वहां भक्तिमय वातावरण में जवारों का विधिपूर्वक विसर्जन किया जाएगा।