पीहर पक्ष वाले लाते हैं कपड़े व उपहार
महिला के पीहर पक्ष वाले गणगौर के दिन अपनी बहनों व बहन के ससुराल पक्ष के सदस्यों के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र व उपहार लाते हैं। जितने घरों से गणगौर निकलती है उतने ही घरों में जीमण का कार्यक्रम होता है।
गोपीनाथ मंदिर में होती हैं एकत्र
गांव निवासी अशोक सिंह शेखावत ने बताया कि अपने-अपने घरों से निकाली गई गणगौर को सबसे पहले गोपीनाथ मंदिर में लाया जाता है। सभी गणगौर आने के बाद यहां से बैंड बाजे के साथ गणगौर की सवारी निकाली जाती है। शाम करीब सवा तीन बजे के लगभग गणगौर की सवारी शुरू होती है। जो गांव के मुख्य रास्तों से होती हुई मेला मैदान में पहुंचती है। वहां पूजने वाली गणगौर को महिलाएं आसुओं के साथ कुएं में धमकाकर आती है। बड़ी गणगौर को वापस लाया जाता है। ईशर पहले हर गणगौर को उसके घर छोड़ते हैं इसके बाद आखिरी में खुद जाते हैं। इसी दिन अगले साल किसके घर से ईशर निकलेगा, इसकी बुकिंग हो जाती है। सवारी में होने वाला खर्चा सामूहिक होता है।
शृंगार करने वाले होते हैं एक्सपर्ट
कई सालों से ईशर का शृंगार कर रहे उम्मेद सिंह ने बताया कि गणगौर का सौलह शृंगार महिलाएं करती है। जबकि ईशर का शृंगार पुरूष करते हैं। गांव के महिपाल सिंह व आजाद सिंह ने बताया कि मेला रात करीब आठ बजे तक भरता है। मेले में बडागांव, हांसलसर, हमीरवास, दोरासर, चारण की ढाणी, मालसर, बजावा व झुंझुनूं के लोग भी शामिल होते हैं।