बेटी के जन्म के बाद मनाया गया था जश्न
बेटी होने पर तीन मार्च को जलवा पूजन व अन्य रस्में निभाई गई थी। निशा ने लाल व हरे रंग का लाल चूडा पहना था, हाथों में मेहंदी रचा रखी थी, मेहंदी का रंग फीका पड़ने से पहले उन्हीं हाथों ने फूल सी बेटी की जान ले ली।
नहीं मिला सकी आंख
कोतवाली थाने में महिला को लाया गया तो वह किसी से आंख नहीं मिला सकी। पूरे समय आंखें नीचे कर कभी खड़ी रहती तो कभी बैठ जाती। वहीं उसकी दूसरी ढाई साल की बेटी को अभी तक यह आभास नहीं है कि उसकी छोटी बहन इस दुनिया में नहीं रही। मां सलाखों के पीछे चली गई है। कभी उसे दादी संभाल रही थी तो कभी मौसी। जब सलाखों के पीछे ले जाने से पहले बहन ने उसके गले से चेन जैसी माला उतारी तो वह फफक पड़ी। उसके चेहरे पर अपराध बोध झलकता रहा। इनका कहना है
घटना के समय परिवार के अन्य सदस्य लावणी करने खेतों पर गए थे। ससुर जब खेत पर गया तो आगे से गेट के कुंदा लगाकर गया था। घर पर मां, बेटी व ढाई साल की एक बालिका थी। दीवार इतनी ऊंची है कि कोई उसे आसानी से नहीं फांद सकता। ऐसे में शक होने पर महिला से पूछताछ की तो उसने सच उगल दिया। अपराध करना स्वीकार कर लिया। अभी तक महिला निशा के अलावा परिवार के किसी अन्य सदस्य की भूमिका सामने नहीं आई है। निशा को गिरफ्तार कर लिया है। पूछताछ जारी है।
नारायण सिंह कविया, थानाधिकारी, कोतवाली
सहन शक्ति बढ़ानी होगी
सोशल मीडिया के कारण इमोशन कम हो रहे हैं। अनेक महिलाएं खुद की प्रोगेस में बच्चों को बाधक मानने लग गई है। कई बार परिवार का माहौल भी कारण बन जाता है। महिलाओं को अपनी सहन शक्ति बढानी होगी। सरकार बेटियों को फ्री में शिक्षा दे रही है। अनेक योजनाएं चला रही है। योजनाओं की जानकारी पंक्ति के लास्ट में खड़े व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। अब तो सरकारी पालना भी लगने लगे हैं। सरकार को प्रोफेशनल डिग्री पर ध्यान देना चाहिए। गरीबी भी कई बार कारण बन जाती है। - कल्पना, असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र, एनएमटी राजकीय बालिका कॉलेज झुंझुनूं