Rang Panchami 2025: जानिए इसकी मान्यता
इस परंपरा के बारे में गांव के बुजुर्ग ने बताया कि आज से तकरीबन डेढ़ से दो सौ वर्ष से पूर्व इस गांव को बसाने वाले मालगुजार देवान ठाकुर द्वारा इस छड़ीमार पंचमी की शुरूआत की गई। उन्होंने बताया कि उस समय गांव में महामारी, हैजा का प्रकोप होते रहता था जिससे ग्रामीणों की मौत हो जाया करती थी। उनकी बताई किवदंती के अनुसार एक बार मालगुजार देवान ठाकुर को मां भवानी ने स्वप्न में बताया कि पंचमी के दिन कुंवारी कन्याओं द्वारा मां की पूजा कर छड़ी द्वारा युवकों को मारने से गांव में इस तरह की
बीमारी से बचा जा सकता है। तब से लेकर आज तक लट्ठमार पंचमी के दिन लड़कियों से मार खाने को लोग अच्छा मानते हैं।
बुजुर्ग द्वय ने बताया कि मां भवानी पर ग्रामीणों की इतनी अटूट आस्था है कि इसके बाद आज तक गांव में किसी को इस तरह की बीमारी का सामना करना नहीं पड़ा। इस परंपरा के अनुसार रंग पंचमी की पूर्व संध्या पर गांव से 10 किमी दूर ग्राम कंठी स्थित मां मड़वारानी मंदिर में पूजा की जाती है। मंदिर के आसपास काफी संख्या में बांस के पेड़ हैं, जिसे ग्रामीण डंगाही कहते हैं।