पहाड़ी क्षेत्र को तीन श्रेणी बांटा गया
पहाड़ी क्षेत्र को तीन श्रेणी (अ, ब, स) में बांटा गया है। आठ से अधिक और पन्द्रह मीटर ढलान वाले इलाके में निर्माण की ऊंचाई अधिकतम 9 मीटर (भूतल प्लस 1) ही कर पाएंगे। मास्टर और जोनल डवलपमेंट प्लान में भी पहाड़ी क्षेत्रों की श्रेणियों का निर्धारण किया जाएगा। खास यह भी है कि जल स्त्रोतों (नहर, नाला,स्टॉर्म वाटर ड्रेन) से दूरी भी तय कर दी है, जिससे उन्हें प्रभावित होने से बचाया जा सके। भूमि के कुल क्षेत्रफल के 40 प्रतिशत भाग में सघन वृक्षारोपण करना होगा।कल हाईकोर्ट में सुनवाई, इसलिए छुट्टी के दिन जारी
पर्यटन के नाम पर पहाड़ी क्षेत्र व उसके आस-पास निर्माण होते रहे। इससे उदयपुर, माउंट आबू, राजसमंद, अलवर, चित्तौडगढ़, बांसवाड़ा सहित कई शहरों व आस-पास का पहाड़ी क्षेत्र प्रभावित हुआ है। सूत्रों के मुताबिक पहाड़ों को काटकर कॉमर्शियल गतिविधि करने से जुड़े मामले में सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई है। इसीलिए नगरीय विकास विभाग को छुट्टी के दिन शनिवार को पॉलिसी जारी करनी पड़ी।राजस्थान में एक प्रधानाचार्य ने बदली स्कूल की तस्वीर, हैरिटेज लुक देखकर चौंके ग्रामीण और अफसर, बढ़ा नामांकन
निर्माण के लिए ये हैं प्रावधान
1-फार्म हाउस : भूखण्ड का न्यूनतम क्षेत्रफल 5000 वर्गमीटर रहेगा। यहां अधिकतम 500 वर्गमीटर एरिया में निर्माण कर सकेंगे।अब इस तरह मिलेगी अनुमति (पहाड़ी को तीन श्रेणी में बांटा)..
‘अ’ श्रेणी – 8 डिग्री स्लोप तक आवासीय योजना व कॉमर्शियल गतिविधि (टाउनशिप पॉलिसी के अनुसार) की अनुमति।‘ब’ श्रेणी – 9 से 15 डिग्री तक पहाड़ी क्षेत्र में रिजॉर्ट, फार्म हाउस, होटल, , एम्यूजमेंट पार्क, प्राकृतिक चिकित्सा, वेलनेस सेंटर, कैम्पिंग साइट,सौर ऊर्जा संयत्र।
‘स’ श्रेणी – 15 डिग्री से अधिक स्लोप होने पर नो-कंस्ट्रक्शन जोन।
पहले इस तरह देते रहे निर्माण की अनुमति…
1- 15 डिग्री स्लोप तक आवासीय कॉलोनी2- 15 से 30 डिग्री स्लोप होने पर रिजॉर्ट, फार्म हाउस, होटल
3- 30 से 45 डिग्री तक 15 प्रतिशत तक बिल्टअप एरिया
4- 45 से 60 डिग्री तक 5 प्रतिशत तक बिल्टअप एरिया की अनुमति
जल स्त्रोतों के किनारे बफर जोन…
10 मीटर से अधिक चौड़ाई वाले नहर, नाला, स्टॉर्म वाटर ड्रेन की सीमा से न्यूनतम 9 मीटर।10 मीटर तक की चौड़ाई वाले नहर, नाला, छोटे जल निकायों, स्टॉर्म वाटर ड्रेन सीमा से न्यूनतम 6 मीटर।
बावड़ी से सभी तरफ न्यूनतम 6 मीटर।
यह भी करना होगा..
1- अधिकतम 3 मीटर की खड़ी गहराई तक पहाड़ी का कटाव की अनुमति होगी।2- जल-मल निस्तारण के लिए बायो-डायजेस्टर की व्यवस्था करना अनिवार्य होगा। अपशिष्ट भूखण्ड क्षेत्र से बाहर प्रवाहित नहीं कर सकेंगे।
3- निर्धारित पार्किंग उपलब्ध होगी। भूखण्ड में पार्किंग उपलब्ध नहीं होने पर निर्माणकर्ता को स्वयं के स्वामित्व की दूसरी समतल भूमि पर भी (500 मीटर की परिधि क्षेत्र में) पार्किंग उपलब्ध करानी होगी।
4- पहाड़ी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन के लिए छोटे जलाशय निर्मित करने होंगे।