24 फरवरी को कोर्ट(Jabalpur High Court) ने अभ्यर्थियों को आयु सीमा में 5 साल की छूट देकर यूपीएससी परीक्षा में शामिल करने के आदेश दिए थे। फैसला सुरक्षित रखा था। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा था।
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ये याचिकाएं सतना के आदित्य नारायण पाण्डेय व 19 अन्य ने दायर की थी। इनमें केंद्र के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी), यूपीएससी के आदेशों को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों(EWS reservation) को यूपीएससी परीक्षा में अन्य आरक्षित वर्गों की तरह अटेम्प्ट में छूट दी जाए।कुछ ने डीओपीटी के तहत भर्तियों में 5 प्रतिशत छूट की मांग की थी।
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- 44 पन्नों के अंतिम आदेश में संविधान के 103 से लेकर 105वें संशोधन तक का विस्तृत विश्लेषण
- सुप्रीम कोर्ट के जनहित अभियान विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया मामले में 5 सदस्यीय बेंच के आदेश का उल्लेख
- कोर्ट ने कहा- आरक्षण मामले में केंद्र और राज्य में मिलने वाले लाभ अलग हो सकते हैं। राज्यों में जनसंख्या के आधार पर सूची बनती है। इस आधार पर केंद्र से मिलने वाले लाभ को चुनौती नहीं दे सकते।
- न्याय द्रष्टांतों के आधार पर संविधान के संशोधन के अलावा यूपीएससी या डीओपीटी के नियमों में ऐसा प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों को छूट मिले।