ली जाती थी आढ़त
अभिभाषक अभिषेक तुगनावत ने बताया कि मप्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड के मंडी महाप्रबंधक ने 2015 में एक आदेश जारी किया था, जिसमें प्याज और आलू के साथ ही लहसुन को भी फल और सब्जी के साथ रखते हुए इसकी नीलामी के आदेश जारी किए थे। इस पर आढ़त ली जाती थी। इसे व्यापारी और किसान मुकेश सोमानी ने प्रमुख सचिव कृषि के समक्ष चैलेंज किया था। तत्कालीन कृषि प्रमुख सचिव राजेश राजौरा ने इसे गलत माना था। जिसके खिलाफ आलू-प्याज व्यापारियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट में फैसले को दी चुनौती
अपील पर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने महाप्रबंधक के आदेश को व्यवस्थागत परिवर्तन मानते हुए सही ठहराया था। जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में ही अपील की गई थी। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने पहले इस पर टिप्पणी की, लेकिन बाद में रिव्यू पीटिशन पर सुनवाई के दौरान अपने पुराने फैसले को रिकॉल कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई थी। सोमवार को इसकी सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. हर्ष पाठक ने मंडी बोर्ड के फैसले के कारण हो रही अव्यवस्था को रखा। सरकार की ओर से शपथ पत्र दिया गया कि 2015 के इस विवादित फैसले को हमने 2016 में ही वापस ले लिया था।
चटनी-मसालों की श्रेणी
कोर्ट ने सपष्ट कर दिया कि लहसुन चटनी मसालों की श्रेणी में आता है। इसे फल-सब्जी की तरह बेचना या उस पर आढ़त लेना गैरकानूनी है। इस फैसले के साथ ही तुरंत प्रभाव से मंडियों में लहसुन पर वसूली जा रही आढ़त को तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। ये भी पढ़ें:
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केस दायर करने वाले सोमानी के मुताबिक मप्र में 254 मंडियों में से इंदौर, बदनावर, उज्जैन, शाजापुर और भोपाल में ही लहसुन पर आढ़त ली जाती है। दरअसल किसान लहसुन बेचने के लिए मंडी में आता है तो उससे 300 के लगभग व्यापारी माल खरीदने के बाद उसे खेरची व्यापारियों को बेचते हैं, जिस पर वे बिक्री राशि का 5 फीसदी आढ़त के रुप में वसूलते हैं। इंदौर मंडी में ही लगभग 2 करोड़ रुपए रोजाना आढ़त के रूप में वसूल लिए जाते थे।
आम आदमी को मिलता था महंगा
चूंकी आढ़त की 5 फीसदी राशि खेरची व्यापारी से थोक व्यापारी लेते थे, जिसके चलते उसकी लागत बढ़ जाती थी। ऐसे में खेरची व्यापारी आम लोगों को 5 फीसदी ज्यादा लागत के हिसाब से लहसुन की बिक्री करते थे। ऐसे में आम जनता को इसके लिए ज्यादा कीमत चुकाना पड़ती थी।
20 हजार करोड़ किसानों को वापस मिले
वहीं याचिका दायर करने वाले सोमानी ने सुप्रीम कोर्ट में मिली जीत को लेकर कहा कि ये जीत हम किसानों की इज्जत की वापसी है। अब हमारी लड़ाई इस बात के लिए होगी कि इस नियम के लागू होने से अभी तक एक दशक में जो 20 हजार करोड़ रुपए बतौर आढ़त के वसूले गए हैं, वो किसानों को मिल सकें।