शुरुआती चरण में ही होगी पहचान
यह तकनीक खासतौर पर डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और कई अन्य बीमारियों की शुरुआती स्टेज में ही पहचान करने में सक्षम होगी। इसके अलावा इस सहयोग से स्वास्थ्य सेवाओं के लिए तकनीक विकसित करने में भी मदद मिलेगी।
बाहर से नहीं मंगाना पड़ेगा मेडिकल डेटा
मेडिकल डिवाइस बनाने के लिए डेटा एक महत्वपूर्ण कारक होता है। अब तक आइआइटी इंदौर को अपनी रिसर्च के लिए विदेशों से डेटा खरीदना पड़ता था। इस साझेदारी के बाद एम्स भोपाल से सीधे तौर मेडिकल डेटा उपलब्ध हो सकेगा। इससे देश में मरीजों के अनुसार तकनीक विकसित हो सकेगी। वहीं, मेडिकल डिवाइस बनाने के बाद उनकी टेस्टिंग और ट्रायल की प्रक्रिया के लिए विदेश नहीं भेजना पड़ेगा। इन डिवाइस की टेस्टिंग एम्स भोपाल के डॉक्टर्स ही करेंगे।
इंक्यूबेशन सेंटर से स्टार्टअप्स को मिलेगा लाभ
एम्स भोपाल का अपना एक इंक्यूबेशन सेंटर है, जहां नए हेल्थ टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जाता है। इस साझेदारी के तहत अब चरक सेंटर भी इन स्टार्टअप्स को तकनीकी मदद देगा, जिससे वे और अधिक एडवांस मेडिकल इनोवेशन पर काम कर सकें।
जल्द आएंगे नतीजे
आइआइटीआइ दृष्टि फाउंडेशन के सीईओ आदित्य एसजी व्यास के मुताबिक, आइआइटी इंदौर के विद्यार्थी, प्रोफेसर और एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने कुल 10 प्रोजेक्ट लिए थे, जिनमें से 5 पर काम शुरू हो चुका है। अप्रेल में आइआइटी इंदौर की चार से पांच वैज्ञानिकों की टीम एम्स भोपाल में जाकर रिसर्च करेगी। वहां की मेडिकल टीम के साथ मिलकर ऐसी डिवाइसेस पर काम होगा, जो आंखों को स्कैन कर बीमारियों का पता लगा सकें।