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हुबली

पहली सीख बच्चों को संस्कार देने की

फादर्स डे पर विशेषजानिए पिता और संतान के रिश्ते ही अहमियत

हुबलीJun 17, 2023 / 08:07 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

 Father's Day

Father’s Day

हुब्बल्ली. मां अगर पैैरों पे चलना सिखाती है, तो पैरों पे खड़ा होना सिखाता है पिता और कभी कितना तन्हा और अकेला है पिता, मां तो कह देती है अपने दिल की बात, सब कुछ समेट के आसमान सा फैला है पिता। किसी कवि की यह पंक्तियां निश्चित ही एक पिता की भूमिका को सही मायने में स्पष्ट कर देती है। हर साल जून के तीसरे रविवार को दुनियाभर में फादर्स डे मनाया जाता है। यह दिन हमारी जिंदगी में पिता की अहमियत और उन्हें सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। इस फादर्स डे पर जानते हैं कि एक पिता की अपनी संतान के प्रति कितनी अहमियत है और बेटा-बेटी का पिता को लेकर कितना सम्मान व प्रेम हैं।
पिता: कांतिलाल पुरोहित ओडवाड़ा, हुब्बल्ली
बच्चों में संस्कार जरूरी है और हर माता-पिता की पहली सीख बच्चों को संस्कार देने की होती है। बच्चों को शिक्षा अच्छी मिले लेकिन साथ ही संस्कार जरूरी है। यही बच्चों को सिखाया। जीवन में समय की अपनी महत्ता है। समय का पालन करेंगे तो हर काम आसान हो जाएगा। हर काम योजनापूर्वक यदि किया जाएं तो सफलता मिलने की संभावना भी अधिक रहती है साथ ही काम भी व्यवस्थित होता है। बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार जरूरी है। उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाएं। उनकी बात सुनी जाएं। कभी भी बच्चों पर कोई बात थोपी नहीं जाएं। उन्हें प्यार से समझाने की जरूरत है।
बेटा: रीतेश पुरोहित
हम सभी की जिंदगी में मां और पिता का किरदार काफी अलग होता है। मां को जहां हमारी सेहत, खाने-पीने आदि की चिंता रहती है, वहीं पिता का फोकस हमारे जीवन को संवारने में लगा रहता है। बचपन में उनका टोकना हमें पसंद नहीं आता और हम अपनी बात पर अड़े भी रहते हैं। हालांकि जब जिम्मेदारियों का बोझ हम पर पड़ता है, तब हमें समझ आता है कि पापा की सीख कितनी सही थी।
बेटा: पीयूष पुरोहित
बचपन में जब भी हम अपनी परीक्षा के परिणाम या फिर किसी इम्तिहान के नतीजों को लेकर परेशान या उलझन में रहते थे, तो पिता यही बताते थे कि हार और जीत जिंदगी का हिस्सा हमेशा रहेंगे, लेकिन यही जिंदगी नहीं है। वह हमेशा यही कहते थे कि कामयाबी की उम्मीद कभी नहीं छोडऩी चाहिए, लेकिन साथ ही हार या असफलता के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जिससे हमारे अंदर हार का डर कुछ हद तक कम तो होता था, साथ ही हार न मानने का हौसला भी मिलता था।
बेटी: हर्षिता पुरोहित
मेरे पिता मेरे लिए आदर्श है। क्योंकि वे एक आदर्श पिता हैं। उनमें वे सारी योग्यताएं मौजूद हैं जो एक श्रेष्ठ पिता में होती हैं। पिता मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढऩे की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता।

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